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________________ १४२ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१० आज शांत हो गई है। श्री जम्बूविजय का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों श्लाघनीय थे। तिब्बती, संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश एवं अंग्रेजी सहित १८ भाषाओं के मूर्धन्य विद्वान मुनि श्रीजम्बू विजयजी, मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराज के साथ रहकर जैन आगमिक साहित्य के शोधकार्य में संलग्न रहते थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया जिसमें महावीर विद्यालय, मुम्बई से प्रकाशित जैन आगम का आलोचनात्मक संस्करण, शारदा बेन चिमनभाई एज्यूकेशनल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद से प्रकाशित हेमचन्द्राचार्य ज्ञान भण्डार की पाण्डुलिपियों के संग्रह का वृहत् सूचीपत्र, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली से प्रकाशित जैसलमेर ज्ञान भण्डार की पाण्डुलिपियों के संग्रह का वृहत् सूचीपत्र, हेमचन्द्राचार्य प्रणीत ‘योगशास्त्र का आलोचनात्मक' संस्करण के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी शामिल हैं। जैन विद्या के क्षेत्र में उनकी जो प्रामाणिकतापूर्ण गहन पैठ थी, उसकी क्षतिपूर्ति तो अब असंभव सी लगती है। काल के इस क्रूर मजाक को विवश और मूक भाव से देखने सुनने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है। उनकी आत्मा चिरशान्ति को प्राप्त हो और वह जहाँ कहीं भी हो जैन विद्या के उपासकों को आलोक और प्रेरणा प्रदान करती रहे। श्री चिंन्तामणि पार्श्वनाथ तीर्थ एवं विश्व कल्याण आत्म जैन फाउण्डेशन तीर्थ मंडल तथा समस्त पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिवार आपको भावांजलि अर्पित करता है। -सागरमल जैन पूज्या प्रवर्तिनी श्री निपुणाश्री म.सा. का स्वर्गगमन खतरगच्छ की साध्वीवर्या पूज्या प्रवर्तिनी श्री निपुणाश्रीजी म.सा. कालधर्म को प्राप्त हो गईं। पूज्य साध्वी जी के दर्शनों का सौभाग्य मुझे दो-तीन बार ही प्राप्त हुआ। वे अपनी साधना के प्रति जागरूक, सहज और सरलमना साध्वी थीं। उनका आभा मंडल प्रभावशाली था। जो भी उनके सम्पर्क में आता था, वह उनसे प्रभावित हो जाता था। वे सहज और सरलमना होने के साथ-साथ स्वाध्यायशील भी थीं। सदैव ज्ञानचर्चा में निमग्न रहती थीं। उनका देवलोक गमन खतरगच्छ जैनसंघ की एक अपूरणीय क्षति है। मैं और प्राच्य विद्यापीठ परिसर में विराजित साध्वी प्रियस्नेहाञ्जनाश्रीजी एवं साध्वी प्रियमेधाञ्जनाश्रीजी एवं समस्त प्राच्य विद्यापीठ परिवार उनको भावांजलि अर्पित करता है। उनकी आत्मा को चिरशान्ति प्राप्त हो यही पार्श्वनाथ विद्यापीठ की भी शुभ भावना है। -सागरमल जैन
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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