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८ : श्रमण, वर्ष ६० - ६१, अंक ४, १ / अक्टू. - दिसम्बर ०९ - जन. -
प्राप्त करने के पथ की । अब रहे जैनाचार्य, हाँ, उन्होंने अवश्य भूगोल - खगोल आदि के विशुद्ध भौतिक वर्णनों का अंकन किया है। अतः विद्युत् की चर्चा भी इन्हीं उत्तरकालीन आगमों में है।
प्रज्ञापना और जीवाजीवाभिगम आदि आगमों में विद्युत् को अग्नि माना गया है और उसे अग्निकायिक जीवों में परिगणित कर सचित्त भी करार दिया गया है। मालूम होता है यह मान्यता प्रज्ञापना आदि किसी एक आगम में उल्लिखित हुई है और उसी को दूसरे आगमों ने दुहरा दिया है, क्योंकि उक्त वर्णन की शैली तथा शब्दावली प्रायः एक जैसी ही है। जैनाचार्य भी आखिर छद्मस्थ थे, सर्वज्ञ तो थे नहीं, अतः उन्होंने विद्युत् को सुदूर बादलों में चमकते देखा और उसे लोक धारणाओं के अनुसार अग्नि मान लिया। लोक-मान्यताओं का जैनाचार्यों पर काफी प्रभाव पड़ा है। इस सम्बन्ध में आगमों के अनेक वर्णन उपस्थित किए जा सकते हैं। यहाँ विवेच्य विद्युत् है, अतः हम इसी की चर्चा करना चाहते हैं, शेष किसी अन्य प्रसंग के लिए रख छोड़ते हैं ।
जिस प्रकार पुराकालीन जनता विद्युत् को दैवी प्रकोप मानती थी, जिसका उल्लेख हम पहले कर आए हैं, जैनाचार्य भी उसी प्रकार विद्युत् को दैवी प्रकोप मानते रहे हैं। वर्षाकाल को छोड़कर अन्य समय में जो वर्षा होती है, उसमें बिजली चमकती है और गरज होती है, तो आगमों का स्वाध्याय कितने ही पहर तक छोड़ दिया जाता है। बिजली चमकी या गर्जन हुआ कि बस तत्काल स्वाध्याय जैसा तप क्यों छोड़ दिया जाता है? स्पष्ट ही है कि जैनाचार्य भी विद्युत् आदि को दैवी प्रकोप मानने के भ्रम में थे । यदि विद्युत् को साधारण अग्नि की चमक ही मानते होते तो ऐसा करने की जरूरत नहीं थी । धरती पर कितनी ही आग सुलगती रहती हैं, पर स्वाध्याय कहाँ बन्द होता है? असज्झाय कहाँ मानी जाती है ? इसका अर्थ यह है कि जैनाचार्य लोक - धारणाओं के अनुसार भी बहुत सी बातें कहते रहते हैं, जो आज तर्कसिद्ध सत्य की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं। विद्युत् को अग्नि मानने की धारणा भी लोकविश्वास पर ही बना ली गई, ऐसा मालूम होता है। यह बात आगमों की दूसरी मान्यताओं से भी सिद्ध हो जाती है।
आगमों में दस प्रकार के भवनपति देवों का वर्णन आता है। वहाँ अग्निकुमार एक देव जाति है, तो विद्युत् कुमार उससे भिन्न एक दूसरी ही जाति है। ये देवजातियाँ प्रकृति के कुछ तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं और अपने नाम के अनुसार काम भी करती हैं। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भगवान् ऋषभदेव के दाह संस्कार का वर्णन है, प्रथम अग्निकुमार अग्नि प्रज्वलित करते हैं और फिर वायुकुमार वायु के