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________________ ध्वनिवर्धक का प्रश्न हल क्यों नहीं होता? क्या विद्युत अग्नि है? :७ कक्षा से इलेक्ट्रोन कुछ रीतियों से बाहर निकाला जा सकता है। जिस वस्तु के परमाणुओं की बाहरी कक्षा से इलेक्ट्रोन निकल जाते हैं, वह धन विद्युन्मय तथा जिसमें आ जाते हैं वह ऋण विद्युन्मय हो जाती है। संक्षेप में विद्युत् की परिभाषा की जाए तो हम कह सकते हैं कि इलेक्ट्रोनों का प्रवाह ही विद्युत् धारा है अर्थात् विद्युत् आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं। यह विद्युन्मय होने की प्रयोगसिद्धि आधुनिक सिद्धान्त सर जे.जे. टामस के अनुसन्धानों पर निर्भर है। यह विद्युत् की स्पष्ट वैज्ञानिक दृष्टि है, जो सर्वत्र विद्यमान है। _ विद्युत् एक अदृश्य ऊर्जा (Energy) है। कार्य के द्वारा ही उसे जाना जाता है। तार आदि में बिजली है या नहीं, यह देख कर नहीं, छूकर ही जान सकते हैं या यन्त्रों के माध्यम से। वर्तमान युग में विद्युत् ही औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रधार है। विद्युत् के ऐसे ऐसे अद्भुत चमत्कार हैं, जो कभी दैवी चमत्कार समझे जाते थे। विद्युत् तरंगों के द्वारा ही रेडियो का आविष्कार हुआ है, जिससे हम लाखोंकरोड़ों मील दूर की बात सुन सकते हैं। टेलीविजन के माध्यम से लाखों-करोड़ों मील दूर के दृश्य को हम ऐसे देख सकते हैं, जैसे आँखों के सामने किसी चीज को देख रहे हों। विद्युत्धारा के द्वारा ही विशाल शक्तिशाली चुम्बकों का निर्माण होता है, जिससे भारोत्तोलन आदि के आश्चर्यजनक काम होते हैं। सर्दी में गर्मी और गर्मी में सर्दी के ऋतुसुख का अवतरण भी आज विद्युत् का साधारण खेल है। आज मानव के चरण चाँद पर हैं, इसलिए कि आणविक विद्युत् शक्ति ने जादू का-सा काम किया है। __ वैज्ञानिक विद्युत् को अग्नि नहीं मानते। अग्नि जलाती है, और जलना, उनके यहाँ एक विशिष्ट रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें वस्तु हवा के सक्रिय भाग (आक्सीजन) से मिलकर एक नवीन यौगिक बनाती है, जिसका भार मूलवस्तु के भार से अधिक होता है। इस क्रिया में ताप और प्रकाश दोनों उत्पन्न होते हैं। विद्युत् : जैन आगमों की दृष्टि में जैन आगमों की चिन्तनधारा मूलतः आध्यात्मिक है। जैनदर्शन का विचार और आचार आत्मानुलक्षी है। अतः वह भौतिक स्थितियों के विश्लेषण में अधिक सक्रिय नहीं रहा है। सर्वाधिक प्राचीन आचारांग और सूत्रकृतांग आदि अब भी उक्त बात के साक्षी हैं। हाँ! उत्तरकालीन आगमों में पदार्थ विज्ञान की चर्चा अधिक मुखर होती चली गई है। उपांगों में तो वह काफी फैल गई है। जहाँ तक भगवान् महावीर की वीतराग देशना का सम्बन्ध है, वहाँ तो चैतन्य एवं परम चैतन्य का ही उद्घोष है। उसी के स्वरूप की चर्चा है और चर्चा है उस परम स्वरूप को
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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