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६ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१०
की अनुभूति होने लगी। इस प्रयोग से फ्रेंकलिन ने यह सिद्ध किया कि आकाशीय विद्युत् ठीक उसी प्रकार का विद्युत् विसर्जन है जैसा कि घर्षण विद्युत् का होता है। इन दोनों में अन्तर केवल इतना है कि आकाशीय विद्युत् में विसर्जन की मात्रा अधिक होती है। आकाश में बादल होने से आकाश एवं वायुमण्डल विद्युन्मय हो जाता है।
इसके अतिरिक्त यह भी ज्ञात किया गया कि बिजली की चमक के मुख्य दो कारण होते हैं। पहला तो बादलों के बीच में विद्युत् विसर्जन होने से तथा दूसरा बादल और पृथ्वी के बीच में विद्युत्-विसर्जन होने से चमक पैदा होती है।
बिजली की चमक के साथ कभी-कभी हम एक गड़गड़ाहट की ध्वनि भी सुनते हैं। जब विपरीत विद्युत् युक्त दो वस्तुएँ पास-पास होती हैं, तो उनमें परस्पर आकर्षण होता है। फलस्वरूप दोनों वस्तुओं के बीच में हवा में तनाव उत्पन्न हो जाता है। इस तनाव के अधिक हो जाने पर चिनगारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस क्रिया को विद्युत् निरावेश (Electric discharge) कहते हैं। इस निरावेश के कारण हवा में खलबली होने लगती है, जिसके फलस्वरूप ध्वनि उत्पन्न हो जाती है। इसी क्रिया के फलस्वरूप जब विपरीत विद्युत्-युक्त बादल आपस में पास-पास आते हैं तो चमक और गर्जन साथ-साथ उत्पन्न होती है परन्तु ध्वनि का वेग प्रकाश के वेग से बहुत कम होने के कारण प्रकाश पहले दिखाई देता है, उसके कुछ देर बाद ध्वनि सुनाई देती है।
जिनमें से होकर विद्युत् सुगमतापूर्वक इधर-उधर आ-जा सके, वे वस्तुएँ विद्युत्-चालक (Cunductor) कहलाती हैं-जैसे कि सभी धातुएँ, लकड़ी का कोयला, क्षार, अम्ल, मानव शरीर, पृथ्वी आदि। और जिनमें से होकर विद्युत् न बह सके, वे एबोनाइट, काँच, लाख, तेल, गंधक, चीनी, मिट्टी आदि वस्तुएँ विद्युत् के अचालक (Insulator) हैं। चालकों में पानी भी एक अच्छा चालक है, अत: पानी से भींगी हुई सुभी वस्तुएँ, चाहे वे शुष्क अवस्था में विद्युत् की चालक हों या अचालक, चालक हो जाती हैं।
प्रयोगसिद्ध वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक तत्त्व के परमाणु के बीच एक केन्द्रीय भाग होता है, जिसे नाभिक कहते हैं। नाभिक के चारों तरफ बहुत ही हल्के कण, जिनको इलेक्ट्रोन कहते हैं, भिन्न-भिन्न कक्षाओं में परिक्रमा करते रहते हैं। ये कण ऋण विद्युत् से आविष्ट होते हैं। नाभिक में धन विद्युत् से आविष्ट कुछ कण होते हैं, जिन्हें प्रोटोन कहते हैं तथा कुछ आवेशरहित कण होते हैं, जिन्हें न्यूट्रोन कहते हैं। साधारण अवस्था में जब प्रोटोनों तथा इलेक्ट्रोनों की संख्या बराबर होती है, तो परमाणु उदासीन होता है। परन्तु परमाणु की बाहरी