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विद्यापीठ के प्रांगण में : १३३
लेखकों तथा पाठकों से निवेदन १. श्रमण में प्रकाशन हेतु लेख की स्वच्छ हस्तलिखित या टंकित प्रति ही
भेजें। उसकी विषय-वस्तु शोधात्मक और तर्कसंगत होने के साथ
सरलतापूर्वक ग्राह्य हो। २. अप्रकाशित व पूर्णतया मौलिक लेख को ही प्रकाशन में वरीयता दी जायेगी।
प्रकाशन के बारे में कोई भी निर्णय प्रकाशन समिति के द्वारा ही लिया
जायेगा। ३. लेख में उल्लिखित मूल श्लोकों, उद्धरणों तथा सभी सन्दर्भो को मूल ग्रन्थ
से मिलाकर शुद्ध करके ही भेजें। लेख के सभी सन्दर्भ एक साथ से
अंतिम पृष्ठ पर दें। ४. लेख यदि कम्प्यूटर-टंकित हो तो उसे सी.डी. के रूप में लेख के साथ
अथवा उसे पार्श्वनाथ विद्यापीठ के ई-मेल पर भी भेज सकते हैं। उसकी एक प्रति अपने पास अवश्य रखें क्योंकि अप्रकाशित लेख लौटाये नहीं
जायेंगे। ५. यह आवश्यक नहीं कि लेखक के विचारों से सम्पादक भी सहमत हो। ६. लेख में आवश्यकतानुसार भाषागत आंशिक परिवर्तन संभव है। ७. लेख के साथ अपने पत्राचार का पूर्ण विवरण अर्थात् पूरा पता, फोन एवं
मोबाइल नं., ई-मेल (यदि हो तो) दें तथा श्रमण' में प्रकाशन का निर्णय
होने तक उसे अन्यत्र प्रकाशनार्थ न भेजें। ८. लेख का एक प्रूफ संशोधन हेतु लेखक के पास भेजा जा सकता है। ९. ध्यातव्य है कि लेख में कोई विवादास्पद तथ्य न हो जिससे परस्पर सौहार्द
की हानि हो अर्थात् तुलनात्मक दृष्टि से समन्वय की भावना हो। १०. 'श्रमण' में दो अतिरिक्त पृष्ठ सामान्य जनोपयोगी (सैद्धान्तिक जानकारी
से सम्बन्धित) रहेंगे। ११. श्रमण के प्रत्येक अंक में एक अतिरिक्त पृष्ठ में प्रेरणादायक किसी साधु
साध्वी, महापुरुष अथवा विद्वान् के जीवन-वृत्त से सम्बन्धित जानकारी देने का प्रयत्न किया जायेगा। अतः ऐसे किसी विद्वान् के जीवन-वृत्त के
प्रकाशन हेतु उनकी पासपोर्ट साइज फोटो भी साथ में संलग्न करें। १२. श्रमण के प्रत्येक अंक में एक अतिरिक्त पृष्ठ 'जिज्ञासा व समाधान'
का रहेगा। इसके लिए पाठक अपने प्रश्न अथवा जिज्ञासाएं हमें भेज सकते हैं।