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________________ विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता रामस्वरूप जैन* वर्ष ५९, अंक १ श्रमण, जनवरी-मार्च २००८ विज्ञान और धर्म दोनों ही हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी हैं। ये एक-दूसरे के पूरक मान लिए जायें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । विज्ञान के दो पक्ष हैं - एक तो कार्य-कारण सिद्धान्तों के आधार पर प्रयोगधर्मिता और दूसरा उसके आधार पर विकसित तकनीकि विज्ञान। इन दोनों पक्षों का अपना महत्त्व है, किन्तु कार्य-कारण सिद्धान्त के आधार जो प्रयोगधर्मिता है- वह जीवन के वैचारिक विकास के लिए अधिक उपयोगी है, और तकनीकि विकास से जो साधन उपलब्ध हुए हैं, उनसे जीवन सुखमय हुआ है। वैज्ञानिक सोच और धर्म एक-दूसरे के प्रतिपक्षी नहीं हैं। अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं- विज्ञान ने जहाँ परम्परागत धार्मिक अन्धविश्वासों को दूर किया । वहाँ धर्म ने विज्ञान एवं तकनीक के कारण उपलब्ध भोग-सामग्रियों के प्रति उत्पन्न इच्छाओं पर नियन्त्रण का पाठ पढ़ाया है। वैज्ञानिक सोच जहाँ व्यक्ति को प्रयोगधर्मी बनाता है, वहाँ धार्मिक आस्था व्यक्ति को तनाव की विभिन्न अवस्थाओं से राहत पहुंचाती है। विज्ञान के कारण जहाँ शारीरिक रोगों के निवारण हेतु चिकित्सा-केन्द्र सुलभ हुए हैं वहीं बड़ी संख्या में मनोवैज्ञानिक उपचार केन्द्र भी बनाये गये हैं । धर्म मानव जीवन को मूल्यवान बनाता है। नैतिकता, ईमानदारी, प्रामाणिकता, सहनशीलता, स्वदोष दर्शन, आत्म-परिष्कार आदि मूल्य धर्माचरण से ही प्राप्त होते हैं | विज्ञान व्यक्ति को आंशिक सुख की ओर बढ़ाता है तो धर्म स्थायी सुख, अपरिमित आनन्द की ओर बढ़ाता है। इसमें सन्देह की कोई बात नहीं है । विज्ञान स्वछंद जीवन जीने की सलाह देता है तो धर्म व्यक्ति को संयमी जीवन जीने की सलाह । विज्ञान की ओर अग्रसर होने पर व्यक्ति विनाश का निमित बनता है। विज्ञान के द्वारा दी गई सुविधाएँ निश्चित रूप से आश्चर्यजनक हैं, लेकिन क्षणभंगुर हैं। सुखपूर्वक जीने के लिए हमारी मनोवृति अहिंसक होनी चाहिए। हमारे विचार सब जीवों के प्रति करुणामय होने चाहिए, विश्व में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां पर जीवन न हो, पृथ्वी का कोना-कोना जीव से भरा पड़ा है और सभी जीव को जीने का समान अधिकार है। कोई भी जीव मरना नहीं चाहता है सभी जीना चाहते हैं। सुख सबको प्रिय है, दुःख अप्रिय है। सुख की प्राप्ति अहिंसा से ही हो सकती है। दशवैकालिकसूत्र में अहिंसा धर्म को महान् सुखकारी बताया गया है। अहिंसा, सत्य, * फ्लैट नं० २/३१८, अवसान मन्दिर, सवाई माधेपुर, राजस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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