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विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता : ८९
अस्तेय, अपरिग्रह का मार्ग ही हमें शांति की ओर ले जाता है। कहा गया है कि जो धर्म भावना में लीन रहता है उसको देवगण भी निरन्तर वंदना करते हैं।जो व्यक्ति ज्ञान को निरन्तर बढ़ाते हैं उनके चारित्र में बराबर वृद्धि होती है।
विज्ञान व्यक्ति को स्थायी सुख का आभास जरूर कराता है लेकिन देता क्षणिक सुख ही है। विज्ञान की सुन्दरता का स्वरूप हम हिरोशिमा और नागाशाकी की कुरूपता से लगा सकते हैं। आज सारे देश में प्रदूषण फैलता जा रहा है। प्रत्येक कार्य मशीन द्वारा किया जा रहा है। सर्वत्र भुखमरी फैल रही है। यह विज्ञान का ही चमत्कार है। लेकिन इन सबका कोई जिम्मेदार है तो वह मनुष्य स्वयं है। यद्यपि मनुष्य जन्म से संयमी होता है। तभी तो देवता भी इस जीवन के लिए इच्छा रखते हैं। लेकिन संयमी चारित्र के साथ जन्म लेने वाला यह मनुष्य समय के साथ-साथ क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, ईर्ष्या, अपकार आदि दुर्गुणों के चादर में ऐसा लिपट जाता है कि उसे अपनी ही सचरित्रतासे जूझना पड़ता है।
नम्रता मानव का श्रेष्ठतम गुण है। सादगी से जीने वाला व्यक्ति कभी भी अनैतिकता को नहीं अपनाएगा और न ही व्यसन का शिकारी होगा। किन्तु विज्ञान की इस दुनियां में सात्विकता न के बराबर रह गयी है।
___ वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञजी, आचार्य विद्यासागरजी, आचार्य शिवमुनिजी आदि के द्वारा विभिन्न संस्कृतियों के समन्वय पर विचार किया जा रहा है। ईमानदारी, नैतिकता, उदारता, आध्यात्मिकता को जनमानस तक पहुँचाया जा रहा है जिससे प्रत्येक संस्कृति को पल्लवित और पुष्पित होने के लिए मुक्त आकाश मिल सका है। आज भी हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध और पारसी सभी को जीने का पूर्ण अधिकार है। यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है।
आज सम्पूर्ण विश्व में शान्त, सुखद वातावरण व भाईचारा की स्थापना के लिए विज्ञान और अहिंसा को एक होना पड़ेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि विज्ञान ने हमें नई ऊचाइयां दी हैं तो अहिंसा ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलायी है। अहिंसा को व्यावहारिक स्तर पर प्रयोग करके महात्मा गाँधी ने अहिंसा की ताकत से जनमानस को अवगत कराया है। जो यह समझते हैं आज विज्ञान ही सबकुछ है तो यह उनकी भूल होगी। बेशक विज्ञान हमें विलासिता के सभी साजो-सामान उपलब्ध कराने में सक्षम है लेकिन जब हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखते हैं तो जीवन को सुखमय बनाने के जो साजो-सामान हमारे पूर्वजों ने दिया है उसके समक्ष वैज्ञानिक उपलब्धियाँ कुछ भी नहीं हैं।
__वर्तमान सन्दर्भ में विज्ञान और अहिंसाकोअलग करके विवेचित करना निःसंदेह ही मानव के लिए घातक सिद्ध होगा। विज्ञान का प्रयोगअहिंसामय ढंगसेहो तो निश्चित ही प्राचीन भारतीय अहिंसामय विज्ञान की एक नई चेतना का पुनर्जागरण होगा।
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