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________________ ८६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक १/जनवरी-मार्च २००८ अहिंसा प्रशिक्षण की आवश्यकता एवं प्रयोग आज विज्ञान का युग है। वैज्ञानिक युग में मानव को हिंसा का व्यवस्थित प्रशिक्षण दिया जाता है। दूरदर्शन पर अनेक हिंसात्मक कार्य दिखाये जाते हैं। अत: यह प्रश्न बार-बार आंदोलित करता है कि क्या केवल अहिंसा कहने से अहिंसा की प्रतिष्ठा हो सकती है? अहिंसक समाज की संरचना हो सकती है? प्रशिक्षक की हर क्षेत्र में आवश्यकता रहती है। अहिंसक प्रतिकार के लिए और भी अधिक प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। एक बार प्रशिक्षण देने मात्र से कार्य की परिणति नहीं हो सकती। बार-बार शिक्षण देकर ही समाज की चेतना जागृत की जा सकती है। आज मानव भौतिकता की चकाचौंध में अहिंसा की बात भूलता जा रहा है। ऐसी मानसिकता होने पर अपेक्षित है - अहिंसा प्रशिक्षण की व्यवस्था शीघ्रातिशीघ्र हो और प्रशिक्षण निरन्तर चलायमान रहे। अहिंसा प्रशिक्षण स्तर - १. पारिवारिक स्तर २. सामाजिक स्तर ३. राष्ट्रीय स्तर ४. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर अणुबम का उत्तर है अहिंसा अणुबम बनाने का मूल उद्देश्य हर हालात में विनाश ही है। इस हिंसात्मक उद्देश्य को अणुव्रत के अहिंसाव्रत से ही निर्मूलित किया जा सकता है और इस प्रकार अणुबम बनाने के संकल्प का निराकरण अणुव्रत के द्वारा ही हो सकता है। संक्षेप में कहें तो अणुबम का निषेध अणुव्रत से ही किया जा सकता है और इसमें निहित अहिंसा-सिद्धान्त से ही देश को सांस्कृतिक संकट और मानवता के विनाश से मुक्ति मिल सकती है। हिंसा से मुक्ति का उपाय या विकल्प अहिंसा सिद्धान्त के तत्त्वचिन्तन में ही निहित है, जिसके अन्वेषण का प्रयत्न आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। अहिंसा उन्नति के वैज्ञानिक उपाय वृक्ष खेती, ऋषि-कृषि, समुद्री खेती तथा मशरुम खेती के द्वारा अहिंसा को बढ़ावा दिया जा सकता है। महावीर के अहिंसा-दर्शन में वर्तमान की समस्याओं का समाधान है, अहिंसा आचरण में उतरे, प्रेक्षाध्यान के प्रयोग इसके लिए कारगर हो सकते हैं। आचार्य श्री महाप्रज्ञ का अहिंसा प्रशिक्षण अभियान एक युगीन क्रान्तिकारी कदम है। अहिंसा के प्रति आस्था जगाने का सामूहिक प्रयास करें। वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों पर इस बाद का विशेष उत्तरदायित्व है कि वे मनुष्य के कार्यकलापों द्वारा प्रकृति को होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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