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________________ ८४ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ / जनवरी-मार्च २००८ है इसलिए स्वयं के साक्षात्कार के द्वारा हिंसा मात्र के नष्ट हो जाने पर अहिंसा अपने आप प्रतिफलित हो जाती है। अहिंसा का यह प्रतिफलन जितना शीघ्र होगा विश्व में शान्ति, सहिष्णुता और सुरक्षा उतनी ही जल्दी स्थापित होगी। विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा आहार और अपराध जैन आचार्यों ने जिस प्रकार आहार का विधान किया है वह पूर्णतः वैज्ञानिक है । उसमें अहिंसा की तो प्रधानता है ही, क्योंकि अहिंसा के बिना तो जैन धर्म या जैन दर्शन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। आचार्य समंतभद्र स्वामी ने श्रावक के आठ मूलगुणों का वर्णन करते हुए 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में कहा है मद्यमासमुधत्यागैः सहाणुव्रत पंचकम् । अष्टौ मूलगुणानाद्दुर्गृहिणां श्रमणोत्तमाः ||३/२० सात्विक भोजन से मस्तिष्क में संदमक तंत्रिका संचारक (न्यूरो इनहीबीटरी ट्रान्समीटर्स) उत्पन्न होते हैं जिनसे मस्तिष्क शान्त रहता है। वहीं असात्विक (प्रोटीन) भोजन से उत्तेजक तंत्रिका संचारक (न्यूरो एक्साइटेटरी ट्रान्समीटर्स) उत्पन्न होते हैं जिससे मस्तिष्क अशान्त होता है।" गाय, बकरी, भेड़ आदि शाकाहरी जन्तुओं में सिरोटोनिन की अधिकता के कारण ही उसमें शान्त प्रवृत्तियाँ पायी जाती हैं जबकि माँसाहारी जन्तुओं जैसे शेर आदि में सिरोटोनिन के अभाव से उनमें अधिक उत्तेजना, अशान्ति एवं चंचलता पायी जाती है। मस्तिष्क में सिरोटोनिन का स्तर कम होते ही व्यक्ति आक्रामक और क्रूर हो जाता है। आहार और जल समस्या जैन धर्म की दृष्टि से जल एक सजीव तत्त्व है। एक तो वह स्वयं सजीव तत्त्व है उसमें अप्काय के स्थावर जीव पाये जाते हैं तथा दूसरे उसके आश्रय में वनस्पतिकाय के स्थावर तथा सकाय के जीव पलते हैं। जल प्रदूषण से अप्काय की हिंसा होती है। प्राकृतिक या अन्य स्रोतों से उत्पन्न अवांछित बाहरी पदार्थों के कारण जल दूषित हो जाता है, वह विषाक्तता एवं सामान्य स्तर से कम ऑक्सीजन के कारण जीवों के लिए हानिकारक हो जाता है तथा संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायक होता है। जैन दर्शन में जल की उपयोगिता और महत्त्व पर बहुत प्रकाश डाला गया है। जीवन है, अमृत है, रोगनाशक है और आयुवर्धक है। जल को दूषित करना पाप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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