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विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता : ८३
हिंसा तथा अहिंसा - विरोधाभासी
हिंसा और अहिंसा में उसी प्रकार अन्तर है जिस प्रकार विष तथा अमृत में। एक का कार्य मृत्यु है तो दूसरे का कार्य अमरता है। ठीक इसी प्रकार हिंसा और अहिंसा में एक का कार्य मार-काट है तो दूसरे का कार्य शान्ति का प्रयास है। हिंसा द्वारा किसी प्राणी को प्रताड़ित करने के पश्चात् कार्य जबरन कराया जा सकता है, परन्तु अहिंसा द्वारा उसकी भावना ही बदल जाती है और वही कार्य वह सहर्ष करने को तैयार हो जाता है। इस प्रकार अहिंसा एक ऐसा शस्त्र है जिसमें शक्ति कूट-कूट कर भरी है तथा जिसके द्वारा प्राणियों की मुक्ति सम्भव है।
महावीर के अनुसार शत्रु को हिंसा से नहीं वरन् अहिंसा से जीतना चाहिए जिससे उसकी भावना तुम्हारे प्रति कुण्ठित न होकर प्रेम का रूप धारण कर ले। अहिंसा एक ऐसा शस्त्र है जो युद्धभूमि को आपस के प्रेम में बदल देता है। अहिंसा ही वह माध्यम है जो शान्ति के रास्ते को बतलाता है,अहिंसा का शस्त्र जिसके पास है वह वास्तव में शक्तिशाली है, इस शस्त्र के पास होने से अटूट आत्मविश्वास का संचार होता है।
सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्र के अनुसार 'अहिंसा ही परमधर्म है। अहिंसा ही परमब्रह्म है। अहिंसा ही सुख-शान्ति देने वाली है, अहिंसा ही संसार का त्राण करने वाली है। यही मानव का सच्चा धर्म है, यही मानव का सच्चा कर्म है। यही वीरों का सच्चा बाना है, यही धीरों की प्रबल निशानी है। इसके बिना न मानव की शोभा है न ही उसकी शान है। मानव और दानव में केवल अहिंसा और हिंसा का ही तो अन्तर है। हिंसा दानवी है और अहिंसा मानवी। जब से मानव ने अहिंसा को भुला दिया तभी से वह दानव होता जा रहा है और उसकी दानवता का अभिशाप इस विश्व को भोगना पड़ रहा है फिर भी मानव इस सत्य को नहीं समझता। किन्तु वह दिन दूर नहीं जब मानव संसार उसे समझेगा, क्योंकि उसके कष्टों का दूसरा इलाज नहीं है।".
__ मन में प्रश्न उठता है कि जब अहिंसा वर्तमान युग के लिए इतनी अनिवार्य है तब इसका पालन हो क्यों नहीं हो पाता? दुनियाँ की बात छोड़देंतो भारत में भी, प्राग्वैदिक काल से इसकी सुदीर्घ परम्परा होने के बावजूद यहाँ के लोग इसका पालन नहीं कर पा रहे हैं - आखिर क्यों? उत्तर होगा - इसलिए अहिंसा को केवल बाह्य नीति समझ कर आचरण भर में उतारने की कोशिश की जाती है,सम्पूर्ण व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं बनाया जाता। सम्पूर्ण व्यक्तित्वका हिस्साआत्मबोध से बन सकता है। जबआत्मानुभव होता है तो बाहर अहिंसा प्रस्फुटित होती है। जिस प्रकार प्रकाश जलाने से अन्धेरा दर हो जाता है, उसी प्रकार आत्मज्ञान से हिंसा नष्ट हो जाती है। अहिंसा हिंसा का अभाव
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