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श्रमण, वर्ष ५९, अंक १/जनवरी-मार्च २००८
जीन प्रविष्ट कराये जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर कह सकते हैं कि काकरोच का जीन टमाटर में, लौकी में, ककड़ी में; मछली का जीन प्याज में प्रवेश कराकर विज्ञान एक नया संशोधन कर रहा है, जो कि अहिंसक शाकाहारी खाद्य पदार्थों के लिए चुनौती है। विज्ञान भी शाकाहार को उत्तम आहार-श्रेणी में प्रतिष्ठित करता है फिर हिंसात्मक घालमेल क्यों? वनस्पति पर भी आक्रमण हो रहा है। वनस्पति अपने आप में स्वयं पूर्ण है इसलिये जानवरों और जीन के जंतुओं को वनस्पति में संक्रमित करना अहिंसा की दृष्टि से अनुचित है।
__ हिंसा पर आधारित अन्न का प्रयोग हमारे रोजमर्रा जीवन में आम होते जा रहे हैं। नमक में आयोडिन मिलाया जाता है जो बूचड़खाने से प्राप्त जानवरों के थॉयरॉईड ग्रन्थि का स्त्राव है। सरकार ने भी आयोडीन मिलाना अनिवार्य बना दिया। ब्रेड, बिस्किट्स, केक, आइसक्रीम आदि में अंडे तथा जिलेटिन मिलाया जाता है। घी तेल में चर्बी मिलाई जाती है। चाँदी का बरक बनाने में बैल का चमड़ा उपयोग में आता है। भ्रामक विज्ञापन के चक्कर में फंसकर मनुष्य अपना पेट कब्रिस्तान बना रहा है। अहिंसा को माननेवाले लोगों को जीवनावश्यक चीजें खरीदते समय गवेषणा करनी चाहिए कि कहीं उसमें जानवरों के अवयवों की मिलावट तो नहीं है? होटल में खाना तथा बाहर बनी चीजें खरीदने की प्रवृत्ति कम करना। रात्रि-भोजन का त्याग तो विज्ञान भी मानता है।
__मांसाहार को अधिक प्रोटीन्सयुक्त बताकर सामिष भोजन का प्रचार किया जाता है, वह गलत है। हाथी शाकाहारी प्राणी है। घोड़ा भी शाकाहारी है। मशीनों की ताकद को आज भी हॉर्स पावर से गिना जाता है। (विज्ञान) मेडिकल साइन्स भी कहता है कि शाकाहारी पदार्थों में वसा की मात्रा कम होती है। इस कारण उच्च रक्तचाप तथा हृदयाघात की संभावना न्यूनतम रहती है।
'अहिंसा परमो धर्मः' कहकर जैन धर्म में इसे मानवीय कृत्यों में सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। कहा गया है
'तुंग न मंदराओ, आगसाओ विसालयं नत्थि। जह तह यिंमि जाणुसु, धम्मम हिंसासमं नत्थि।।'
अर्थात् जैसे जगत् में मेरु पर्वत से ऊँचा और आकाश से विशाल अन्य कुछ नहीं है, वैसे ही अहिंसा के समान कोई धर्म नहीं है। क्योंकि अहिंसा का मूल रहस्य हर जीव को अपने जैसा समझने में है। जैसे हमे कोई वेदना प्रिय नहीं लगती वैसे ही कोई भी जीव दुःख को प्रिय नहीं समझता। अहिंसा तो मनुष्य का स्वभाव है।
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