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________________ श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ जनवरी-मार्च २००८ विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता श्रीमती कमलिनी बोकरिया सृष्टि के आदि से ही मनुष्य के मन में यह जिज्ञासा रही है कि मेरे आस-पास जो जगत् है, उसमें कितनी विविधता है। इसका अवलोकन करते समय मन से प्रश्न उठता है यह सृष्टि किसने बनाई? क्यों बनाई? सृष्टि के क्रम में सृजन और विनाश दिखता है। कोई जन्मता है, पनपता है,मरता है। कोई पनपने से पहले ही मर जाता है। ऐसा क्यों है? कैसे है? अनेकों उलझनें हैं। इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास विज्ञान ने किया और दर्शन ने भी किया। संसार के मौलिक पक्षों के मूल में विज्ञान और आध्यात्मिकता दोनों को प्रश्रय मिला। लेकिन दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं, क्योंकि आज का विज्ञान प्रगतिपथ पर अग्रसर होते हुए भी सृष्टिक्रम तथा मनुष्य के कार्यकलापों की हर तह तक नहीं पहुँच पाया है। मनुष्य का मन एक चंचल पवन के समान है, उसकी अटखेलियों को खोजने का, परखने का तथा मोड़ने का प्रयास आध्यात्मिकता ने किया। आज जो समाज इतनी संकटपूर्ण दशा में फंसा है, उसका कारण है कि वह 'शहर पर घेरा डालने' या सेना को व्यवस्थित करने के विषय में सब कुछ जानता है और जीवन के मूल्यों, जीवन का दर्शन तथा धर्म के प्रश्नों के बारे में निश्चिन्त बना हुआ है। संयम, परंपरा, कानून सब शिथिल हो गए हैं। जो शताब्दियों से लोगों के आचरण का निर्देशन और अनुशासन करने में समर्थ थे, आज खत्म हो गये हैं। यह समाज गलतफहमियों, कटुताओं और संघर्षों से विदीर्ण हो गया है। सारा वातावरण संदेश, अनिश्चितता और भविष्य के अत्यधिक भय से भरा है। हमारा जनजीवन बढ़ते हुए कष्टों, आर्थिक दरिद्रता की तीव्रता, अभूतपूर्व पैमाने पर होने वाले युद्ध, गुटबाजी, गुंडा-गर्दी तथा उच्चपदस्थों के मतभेद, हिंसाचार से शक्तिहीन बनता नजर आ रहा है। परिवर्तन तो जीवन का स्थायी भाव है। सृष्टि-क्रम में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। आज का भौतिक जीवन जो विज्ञान का सहारा लेकर चल रहा है वह गतिशील बना हुआ है। विज्ञान वह प्रक्रिया है जो अवलोकन, परिक्षण वर्गीकरण आदि स्तरों से गुजरता है। वैज्ञानिक तथ्यों से मेल खानेवाला, तार्किक और बुद्धिसाध्य सत्य ही * द्वारा- वर्द्धमान ट्रेडर्स, सीमेन्ट कार्नर, मालीवेस, बीड (महाराष्ट्र)- ४३११२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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