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________________ विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता : ७१ का कल्याण हो सकता है। केवल एक पर आश्रित रहने से मनुष्य एक पक्ष का ही हो जायेगा। कुछ विद्वान् अहिंसा और विज्ञान को नितांत भिन्न बनाते हैं। हाँ, अहिंसा और विज्ञान का क्षेत्र कुछ भिन्न अवश्य है, क्योंकि अहिंसा मनुष्य की आध्यात्मिक वृत्तियों का परिणाम है और विज्ञान ज्ञानात्मक वृत्तियों का। अहिंसा का सम्बन्ध आदर्श से है और विज्ञान का सम्बन्ध यथार्थ से। साहित्य के क्षेत्र में केवल आदर्शवाद या केवल यथार्थवाद हास्यास्पद बन जाते हैं और उनसे जीवन और जगत् का कोई कल्याण नहीं होता है। इसलिये आदर्श और यथार्थ का सामंजस्य ही विद्वान् को सम्मत होता है। साहित्य आदर्शोन्मुख यथार्थवादी होना चाहिये, इसी प्रकार अहिंसा और विज्ञान के सामंजस्य से ही लोकहित संभव हो सकता है। अहिंसा की प्रकृति संश्लेष्णात्मक होती है जबकि विज्ञान की विश्लेषणात्मक। अहिंसा का लक्ष्य मानव के "स्व" को विस्तृत करके परमानंद प्राप्त करना है जबकि विज्ञान मानव के भौतिक सुख को अपना लक्ष्य स्वीकार करता है। विज्ञान से विकास और विनाश विज्ञान की तस्वीर दोनों तरह की है उजली व मैली। इसलिये कि उसने हमें सत्य की खोज की एक व्यवस्थित, विश्वसनीय और तर्कसंगत पद्धति दी है, मैली इसलिये कि उसने मनुष्य के हाथ में विनाश के नये और खतरनाक हथियार थमा दिये हैं, जिनसे वह अपना नुकसान तो कर ही रहा है; पृथ्वी और प्रकृति को भी तहसनहस करने पर तुला है। धरती की हरी खोल लगभग ध्वस्त हो चुकी है। अतः जगहजगह मरुस्थल सिर उठाने लगे हैं। वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में आज विज्ञान के विकास के चरण बढ़ते चले जा रहे हैं, उसका कार्यक्षेत्र और कर्मक्षेत्र आशातीत व्यापक हो चुका है। नित नये-नये आविष्कारों और अनुसंधानों ने सचमुच मानव जगत् को चमत्कृत कर रखा है। यही कारण है कि आज हर एक देश, प्रांत, नगर, गांव और एक समाज उस नये आविष्कारों के साथ आगे बढ़ने हेतु लालायित है। आज का शिक्षित और अशिक्षित समाज, न वैज्ञानिक साधन-प्रसाधनों से अपने आप को अलग-थलग कर सकता है और न वंचित ही। क्योंकि प्रत्यक्षं किं प्रमाणम् के अनुसार आज विज्ञान की अनेक विशेषतायें प्रत्यक्ष हो चुकी हैं। विज्ञान कृत कार्य-कलापों की अच्छी या बुरी प्रतिक्रिया प्रत्यक्ष करने में देर नहीं करता है। एक सेकंड में हजारों-हजार बल्बों में विद्युत तरंगे तरंगित होने लगती हैं। आंख की पलक झपकते हजारों मील दूरस्थ चित्र ही नहीं, साक्षात गायक और वक्ता आंखों के सामने नाचते दिखने लगते हैं। हजारों मील दूर बैठे सम्बन्धियों से टेलीफोन, मोबाईल के माध्यम से बातें हो रही हैं। उपग्रह अनंत आकाश में उड़ाने भर रहा है व उसका नियंता धरती पर बैठा-बैठा निर्देशन कर रहा है, निंयत्रण कक्ष को सम्हालें बैठा है। २०-२५ कदम दूर बैठा मानव रिमोट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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