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________________ ६६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक १/जनवरी-मार्च २००८ परमाणु शक्ति भी विज्ञान की एक महान् देन है। इसके शुभ एवं अशुभ दोनों ही पक्ष हैं। आज इसके माध्यम से विनाशकारी अस्त्रों-शस्त्रों का निर्माण किया जा रहा है, जो मानव के लिए अभिशाप है। बिजली उत्पादन तथा पहाड़ों को काटने में इस शक्ति का प्रयोग किया जाता है। अहिंसा एक अनोखा शस्त्र है जो अन्यायी, आततायी को भी झुका सकता है बीसवीं सदी में विश्व ने एक अद्भुत दृश्य देखा। महात्मा गाँधी ने सत्य का झण्डा लेकर अहिंसा का शस्त्र उठाया और जिसके साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, ऐसी अंग्रेज हुकूमत के कब्जे से भारत को आजाद कराया। न तो उन्होंने तोप ही दागी और न ही बंदूक चलाई। वर्तमान युग तो हिंसा का युग ही बन गया है। पूर्व काल में तो सिर्फ खाने के लिए और मनोरंजन के लिए शिकार आदि के रूप में हिंसा होती थी लेकिन आज तो वैज्ञानिक प्रयोग में हिंसा चरमोत्कर्ष पर है। अतः वर्तमान में अहिंसा का प्रचार करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। अहिंसा माता के समान सुखदायिनी है। आज इस भौतिकवादी युग में विश्व वित्त के पीछे पागल है, उसे न तो आत्मिक सुख-सन्तोष है, न ही मानसिक शान्ति। उसे यह जीवन बहुत भारयुक्त तथा कठिन लगने लगा है। वह ज्ञान, विवेक, संस्कार चारित्र तथा अहिंसा का मूलमंत्र भूल गया है, संयम तथा अहिंसा की साधना उसको कठिन लगने लगी है। वह योगी नहीं भोगी बनने पर उतारू है और यही भोगलिप्तता उसे विनाश के कगार पर ले आयी है। वर्तमान परिवेश में अहिंसा ही युग धर्म है। अहिंसा ही सर्वनाश से बचने की ढाल है। अहिंसा ही जीवजगत् के लिए प्राणवायु है और विज्ञान के लिए आवश्यक भी। अहिंसा वह माँ है जिसकी गोद में बैठकर सारा जगत् सुख शांति का अनुभव कर सकता है पर खेद है आज अहिंसा मां की गोद में कोई बैठना नहीं चाहता है। शायद इसीलिये प्रकृति आज रूठी है और मानव परेशान है। भला कोई बेटा माँ के आँचल की उपेक्षा कर सुखी हुआ है। आज अपना सुख दूसरों का दुःख बन रहा है तो दूसरे का सुख भी आदमी को दुःखी किये है और यही सबसे बड़ी हिंसा है। अतः इससे बचने के लिए ऐसा जीवन जिया जाये कि दूसरों को कष्ट न हो और परमात्मा के सामने एक प्रार्थना ये भी की जाये : "सब सुखी हों, ये मेरी भावना है, हो न दुःख किसी को, मेरी प्रार्थना है तेरी भावना प्रभु, मेरी भावना बने, इसी प्रार्थना में अहिंसा की आराधना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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