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________________ श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ जनवरी-मार्च २००८ विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता कु० प्रियंका चोरड़िया * अहिंसा का उपदेश हजारों वर्षों से चल रहा है फिर भी अहिंसा का विकास नहीं हो पा रहा है, हिंसा बढ़ रही है। जब-जब अहिंसा के बारे में कुछ कहा जाता है, उक्त प्रश्न उभर कर सामने आता है और अहिंसा का सूर्य तर्क के बादलों में छिप जाता है। अहिंसा का उपदेश भी गलत नहीं है और अहिंसा के बारे में पूछा जाने वाला प्रश्न भी गलत नहीं है । अहिंसा का सिद्धांत जानने के लिए उपदेश जरुरी है और अहिंसा प्रभावी नहीं बन रही है, यह विचार भी ध्यान को आकृष्ट करने वाला है। आज हम उपदेश के युग में नहीं जी रहे हैं, वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं। विज्ञान के आविष्कार केवल सिद्धांत के आधार पर नहीं होते । यदि वैज्ञानिक के पास प्रयोगशाला न हो और वह प्रयोग न कर सके तो वह वैज्ञानिक- आविष्कार करने में सक्षम नहीं होगा। लेकिन अहिंसावादी लोग केवल उपदेश तक सीमित हैं। वे अहिंसा के क्षेत्र में प्रयोग नहीं कर रहे हैं, इसलिए अहिंसा प्रभावी नहीं हो रही है। आज विज्ञान का युग है । सर्वत्र विज्ञान की दुन्दुभी बज रही है । आज विज्ञान ने मानव को इतना सशक्त तथा प्रभावशाली बना दिया है कि वह प्रकृति की शक्तियों को चुनौती देने के लिए उद्यत है । आज थल, नभ तथा जल पर मानव का आधिपत्य स्थापित हो चुका है। आज धरती से ऊपर उठकर वह ग्रहों तथा नक्षत्रों तक पहुंचने का सफल प्रयास कर रहा है। नए-नए आविष्कार मानव की सुख-सुविधाओं में निरंतर वृद्धि कर रहे हैं। मानव जिन बातों की कल्पना तक नहीं कर सकता, आज उन्हीं को अपनी आखों के समक्ष प्रत्यक्ष रूप से देख रहा है। अतः विज्ञान के लिए अहिंसा अत्यावश्यक है। जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र शेष नहीं है, जहां विज्ञान ने अपना अधिकार नहीं जमाया है। यदि हमारे पूर्वज अपनी कब्रों से उठकर आज के विश्व का अवलोकन करें तो दांतों तले उंगली दबायेंगे तथा सोचेंगे कि ऐसा किस प्रकार संभव हो सका है? विज्ञान के प्रयोग तथा परीक्षण हमें यथार्थ का बोध करा रहे हैं। आज मानव हर बात को तर्क की कसौटी पर कस कर देखता है। * 'द्वारा- श्री दगडूलाल चोरड़िया, पो० छीपावड़, खिरकियां, जिला हरदा ( म०प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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