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________________ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ / जनवरी-मार्च २००८ भगवान महावीर के अनुसार सभी वस्तुओं, जड़ और चेतन दोनो में जीव है। उनके अनुसार प्राणी मात्र के प्रति मन, वचन, कर्म से संयमपूर्ण और दया का व्यवहार किया जाना चाहिए। किसी भी जीव को कभी भी हिंसा नहीं पहुँचानी चाहिए। ६४ भारतीय ज्ञान - विज्ञान के मनीषियों ने कहा है कि चौरासी लाख योनियों को भोगने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त होती है । जीवन की मूलभूल एकता प्रकृति का एक तथ्य है। विश्वबंधुत्व की बात करना इस तथ्य का व्यावहारिक रूप है। बौद्धिकता मानव की विशिष्टता है, वह मनुष्य को विश्लेषण की प्रवृत्ति प्रदान करती है जिसके द्वारा वह दृश्यमान जगत् के वैज्ञानिक अध्ययन में प्रवृत्त होता है। साथ ही वह व्यक्ति को एक से अनेक करने का स्वभाव प्रदान करती है और इसी स्वार्थ के वशीभूत होकर मनुष्य हिंसक हो जाता है और विध्वंसक कार्रवाई की ओर प्रवृत्त होता है। भगवान महावीर और महात्मा गांधी जैसे महपुरुषों ने जन-जन को यह संदेश दिया कि 'जीओ और जीने दो।' इन महापुरुषों का जीवन अहिंसा से ओत-प्रोत था । उनके मन में छोटे से छोटे जीव के लिए मन में करुणा के भाव थे। उन्होंने सभी को यह संदेश दिया कि हर व्यक्ति अहिंसामय होकर जीए तो प्राणीमात्र को दुःख प्राप्त न हो। पर आज इक्कीसवीं सदी में विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि सारा जीवन वैज्ञानिक यंत्रों के ऊपर निर्भर हो गया है। पर इंसान तेज रफ्तार से जीने का आदी हो गया है। आज सोनोग्राफी व इंटरनेट ने मानव का जीवन ही बदल दिया है। सोनोग्राफी के जरिये भ्रूणहत्या दिनो दिन बढ़ती जा रही है। जिसको माँ कहा जाता है, जिसे ममता की मूर्ति समझा जाता है आज वही अपनी ममता को भूल गयी है। सोनोग्राफी में पता चल गया कि लड़की है तो एक औरत ही अपनी कोख में उसकी हत्या करवा देती है तब उसके अन्दर की इन्सानियत हैवानियत में बदल जाती है, वह इतनी हिंसक हो जाती है कि उसे किसी भी चीज का भान नहीं रहता । कुदरत ने औरत को ही मां बनने का दर्जा दिया है पर उसी औरत ने आज अपने स्वरूप को विरूपित कर लिया है। अपनी इज्जत और मर्यादाएं बिल्कुल भूल गई है। आज के भौतिक युग में जहां मनुष्य को वैज्ञानिक उपकरणों की आवश्यकता है वहीं मानव को अपने जीवन में अहिंसा की भी आवश्यकता है। आज मनुष्य का जीवन हिंसा के साधनों से जुड़ गया है। इसलिए हर प्राणी अशांति का जीवन जी रहा है | अतः जीवन को अहिंसा रूपी विज्ञानशैली में ढालना होगा तभी जीवन में शांति की स्थापना हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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