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विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता
कु० निकिता चोपड़ा'
श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ जनवरी-मार्च २००८
पश्चिम के एक प्रसिद्ध विचारक ने वर्षों पूर्व कहा था "आवश्यकता आविष्कार की जननी है। ' जैसे-जैसे मनुष्य की आवश्यकताऐं बढ़ती जाती हैं, आवश्यकताओं की पूर्ती के साधन भी बढ़ते जाते हैं। इस प्रकार आवश्यकता व विज्ञान एक-दूसरे पर आश्रित हैं। आवश्यकता के बगैर विज्ञान की कल्पना करना असंभव है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में विज्ञान का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो गया है। सर्व-सुविधासम्पन्न बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के आविष्कारों की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।
विज्ञान के द्वारा मानवजाति का कल्याण व विध्वंस दोनों ही संभव है । विज्ञान ने एक तरफ कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, मनोरंजन, संचार, उद्योग, अंतरिक्ष इत्यादि के क्षेत्रों में प्रगति उन्नति की है, वहीं दूसरी तरफ विध्वंसकारी हथियारों के निर्माण के कारण सारी दुनियाँ बारूद के ढेर पर नजर आती है। बस एक छोटी-सी चिंगारी की जरूरत है और सारी दुनियाँ पल भर में स्वाहा हो जाएगी।
प्रकृति का प्रथम आविष्कार मानव चट्टानों और अवशेषों के रूप में प्रकृति की कोख में जीवन के विकास की कहानी अंकित है। इसको पढ़ने का सामर्थ्य जिन्हें प्राप्त हैं, वे कह सकते हैं कि विकास की शत- सहस्र वर्षो की प्रक्रिया के उपरांत मानव शरीर का निर्माण संभव हुआ है। प्रकृति की सम्पूर्ण कृतियों में सर्वाधिक बुद्धिमान व समझदार कृति मनुष्य है। मनुष्य ने जीवन को सरल व सुगम बनाने के लिए विज्ञान का सहारा लिया। आज वैज्ञानिक आविष्कार अपनी चरम सीमा पर है। प्रकृति के नियमों को ताक पर रखकर नए शोध व खोज जारी हैं। मानव जाति के हित व अहित को अनदेखा करते हुए आविष्कारों की प्रक्रिया सतत् जारी है। सर्वश्रेष्ठ बनने की होड़ में मनुष्य जाति ने ऐसे हथियार जमा कर रखे हैं जिनसे पूरी पृथ्वी को दर्जनों बार नष्ट किया जा सकता है। अकेले अमेरिका के पास इतने विध्वंसक हथियार मौजूद हैं जिनसे पूरी पृथ्वी को कितनी बार विनष्ट किया जा सकता है। यदि तीसरा विश्व युद्ध छिड़ता है तो उसकी भयावहता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो हिंसा के तांडव से एक भी इंसान अछूता नहीं रह सकता और संभव है कि पृथ्वी पर से जीवन का नामो-निशान मिट जाए। ईश्वर न करे कि कभी भी तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो ।
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द्वारा- विमल ट्रेडर्स, सदर बाजार, राजनांदगाँव (छतीसगढ़)
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