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________________ विज्ञान के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता : ६१ सभी लोग जो पूरे विश्व में अमन-चैन, भाईचारा, मित्रता, सौहार्द्र आदि की कामना करते हैं उन्हें बहुत खुशी मिलेगी जबकि आतंकवादियों व अमन-चैन न चाहने वाले लोगों को निराशा व दुःख ही हाथ लगेगा। क्योंकि जब विज्ञान और अहिंसा मिलचलते हैं तो उसके परिणामस्वरूप हर तरफ विकास, खुशी, अमन-चैन, एकता, सौहार्द्रता तथा आतंकवादियों व उपद्रवियों से मुक्ति आदि मिलती है जो शायद उन बुरे विचार वाले लोगों, आतंकवादियों के सपनों को चूर तथा इरादों को कुचलने वाला होता है। जब विज्ञान और अहिंसा किसी कार्य में साथ-साथ नहीं होते हैं तो लोगों को कई कठिनाइयों से रूबरू होना पड़ता है जैसे उपनिवेशवाद, पर्यावरण प्रदूषण, आतंकवाद, भ्रष्टाचार आदि। आज से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व ईस्ट इंडिया कम्पनी जो अपना घटिया उपनिवेशवाद का इरादा लेकर भारत आई थी उसके पीछे भी विज्ञान की प्रगति में अहिंसा का न होना ही था। तभी तो जैसे-जैसे वहाँ नये-नये आविष्कार होते गए उसी की आपूर्ति के लिए कच्चे माल की आवश्यकता पड़ी और कच्चे माल की पूर्ति करने के लिए भारत को लगभग १५० वर्षो तक गुलामी सहनी पड़ी। पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी मानव और विज्ञान के बीच आपसी सामंजस्य का न होना ही जिम्मेदार है। प्रायः हर प्रकार के प्रदूषण की वृद्धि के लिए हमारी वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति तथा मनुष्य का अहिंसा रहित और अविवेकपूर्ण आचरण ही जिम्मेदार है। यदि मनुष्य को जीव-जंतुओं, वनस्पतियों तथा अपने आसपास के अन्य लोगों का जरा भी ध्यान आता तो वह ऐसे जहरीले धुँओं को वायुमंडल में यूँ ही फैलने नहीं देता । 'आतंकवाद हुआ यहाँ पर, आतंकवाद हुआ वहाँ पर काँपी धरती, काँपा देह, संकट छाया सारे जहाँ पर । । ' आतंकवाद विज्ञान पर काला धब्बा है । विज्ञान ने अणुबमों का आविष्कार कर हर तरफ छायी खुशहाली को गहरे शोक, शक तथा संदेह में परिवर्तित कर दिया है। मनुष्य को हर पल यही चिंता रहती है कि कहीं यहाँ बम न हो, यह व्यक्ति कहीं आतंकवादी तो नहीं। विज्ञान ने मानव को लहलहाते खेत और गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ तो दीं परन्तु उन्हें कुछ ही पल में श्मशान में बदलने वाले भीषण बम भी दिये। जिनमें नाम - मात्र की अहिंसा भी दिखाई नहीं देती । अहिंसा रहित इसी अणुशक्ति के कारण हिरोशिमा और नागासाकी को विश्व मानचित्र से मिटाने का 'पुनीत' कार्य हुआ। बारूद की ढेर पर बैठे मानव की शक्ति-विलास न जाने कब समस्त विश्व को महाप्रलय की ओर धकेल दे। ये जगमगाते नगर, ये ब्रह्माण्ड - विजय का अभियान, ये शक्ति और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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