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पुरुषार्थ-चतुष्टय : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में : ५७ १४. उत्तमखमद्दवज्जव सच्चसउच्चं च संजमं चेव।
तवचागमकिंचण्हं बम्ह इदि दसविहो धम्मो।। समणसुत्तं, गाथा ४२६ उत्तमःक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः।
तत्त्वार्थसूत्र, ९/६ १५. वैशेषिकसूत्र १/१/२ १६. प्रो. सागरमल जैन का आलेख, 'मूल्य ओर मूल्यबोध की सापेक्षता का सिद्धान्त'
श्रमण, जनवरी-मार्च, अंक १३ १७. दशवैकालिकनिर्यक्ति, २६२-२६४ १८. योगशास्त्र १/५२ १९. उपाध्याय अमरमुनि का आलेख, 'धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष', श्री अमर
भारती, जून १९९५ २०. समणसुत्तं, १९२ २१. वही, २७४-२७५ २२. वही, १६२ २३. वही, ५/ १३७-१३९ २४. वही, ६१७-६१९ २५. वही, ६२०
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