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________________ ३. बाल - पण्डितमरण ज्यों-ज्यों व्यक्ति अनासक्ति, साधना की ओर अग्रसर होता है त्यों-त्यों व्रतों को धारण करता है। व्रत साधना है जिसकी निष्पति संवर है। यह जीव की क्रमिक उन्नति का पांचवा गुणस्थान है। इस गुणस्थान के प्राणी को श्रावक की संज्ञा दी जाती है जिसे व्रताव्रती कहते हैं। इस गुणस्थान को 'देशविरति सम्यक् दृष्टि गुणस्थान' कहते है। इस गुणस्थान में व्रत व अव्रत दोनों साथ होते हैं तभी इसे व्रताव्रती कहा २५ ता है। इस गुणस्थान में मिथ्यात्व का अभाव व अविरति की आंशिक विद्यमानता पाई जाती है। प्रमाद, कषाय व योग आश्रव विद्यमान होते हैं। ऐसा जीव जब मरण को प्राप्त होता है तो उसे बाल - पण्डितमरण कहते है, यानी आंशिक अज्ञान की विद्यमानता। बाल व पण्डित दोनों की प्राप्ति के कारण इसमें आंशिक अज्ञान और स्थूल हिंसा आदि से विरति रूप चारित्र व दर्शन दोनों होते हैं। यह सल्लेखना पूर्ण मरण विरताविरत चारित्रधारी जीव के होता है। ४. पण्डितमरण छठे व सातवें गुणस्थान में जिसका सल्लेखना पूर्वक मरण होता है उसे पण्डित मरण कहते है। पण्डित - पण्डित के प्रकर्ष रहित जिसका पाण्डित्य होता है, उसे पण्डित कहते हैं तथा उनका सल्लेखना पूर्ण मरण पण्डित-मरण है। यह मरण उन साधुओं को होता है जो अपने आचरण या चारित्र को शास्त्र सम्मत या आप्तपुरुषों के कहे अनुसार बना पाते हैं। भगवती आराधना में कहा गया है कि पण्डितमरण के तीन प्रकार है: २६ परीषह एवं उपसर्गजय के संदर्भ में सल्लेखना व्रत : ४७ i. प्रादोपगमन ii. भक्त प्रतिज्ञा iii. इंगिणीमरण i. प्रादोपगमन पाद और उपगमन अर्थात् पैरों से उपगमन पूर्वक होने वाले मरण का प्रादोपगमन मरण कहते हैं। अपने पैरों से चलकर अर्थात् संघ से निकलकर योग्य देश में आश्रय लेना प्रादोपगमन है। इसमें साधु न स्वयं अपनी सेवा करता है और न दूसरों से कराता है। जिसमें अस्थिमात्र शेष रहता है, वह प्रादोपगमन करता है । प्राद का अर्थ संन्यास है। अतः संन्यासियों (साधुओं) के मरण का एक भेद इसे कहा गया है। ii. भक्त प्रतिज्ञा भक्त का अर्थ-जिसका सेवन किया जाए और प्रतिज्ञा का अर्थ है - त्याग । अर्थात् जिसमें भोजन का त्याग किया जाये, वह भक्त प्रतिज्ञा है । यह दो प्रकार से किया जाता है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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