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________________ श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ जनवरी-मार्च २००८ परीषह एवं उपसर्गजय के संदर्भ में सल्लेखना व्रत डॉ० सोहनराज तातेड़* परीषहजय एवं उपसर्गजय जैन दर्शन के केन्द्र में आत्मा है। आत्मा से कर्मों को अलग कर वीतरागता की स्थिति प्राप्त करना साधना का मूल लक्ष्य है। आचार्य तुलसी ने मनोनुशासन में बतलाया-आत्मशुद्धि साधनम् धर्मः। आत्मशुद्धि का साधन धर्म है। आत्मशुद्धि की प्रथम मंजिल सम्यक्-दर्शन है। सम्यक्-दर्शन के बाद सम्यक्-ज्ञान तथा सम्यक्ज्ञान के बाद सम्यक्-चारित्र का स्थान है। तीनों के समन्वय की उत्कृष्ट अवस्था वीतरागता की प्राप्ति है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया- सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।' सम्यक्-दर्शन, ज्ञान और चारित्र मोक्ष का मार्ग है। आगमवाणी में कहा गया - चारितं खलु धम्मो - चारित्र ही धर्म है। चारित्र के द्वारा ही आत्मशुद्धि संभव है। चारित्र को पुष्ट करने में परीषहजय एवं उपसर्गजय सहयोगी बनते हैं। परीषहजय का अर्थ है -कष्टों को समभाव से सहन करना। 'परिषहृत इति परीषह जो सहा जाय वह परीषह है। परीषह को परिभाषित करते हुए आचार्य उमास्वाति ने लिखा है - 'मार्गाच्यवननिर्जरार्थं परिसोढव्याः परीषहाः।।' अर्थात् स्वीकृत मार्ग से च्युत होने तथा कर्मों की निर्जरा के लिए भूख, प्यास आदि जो दुःख, कष्ट या विघ्न सहन किए जायें उन्हें परीषह कहते हैं, और परीषहों को जीतना परीषहजय कहलाता है। परीषह के अर्थ में ही कहीं कहीं पर 'उपसर्ग' शब्द भी व्यक्त हुआ है। भगवान् महावीर की धर्म-प्ररूपणा के दो मुख्य अंग हैं- अहिंसा और कष्ट-सहिष्णुता। कष्ट सहने का अर्थ शरीर, इन्द्रिय और मन को पीड़ित करना नहीं, किन्तु अहिंसा आदि धर्मों की आराधना को सुस्थिर बनाए रखना है। आचार्य कुंदकुंद ने कहा है: सुहेण भाविदं णाणं, दुहे जादे णिणस्सदि। तम्हा जहाबलं जोई, अप्पा दुक्खेहि भवए।। अर्थात् सुख से भावित ज्ञान दुःख उत्पन्न होने पर नष्ट हो जाता है, इसलिए योगी को यथाशक्ति अपने आपको दुःख से भावित करना चाहिए। साधना की सफलता के लिए अनुकुलता की शीतलता के साथ परीषह की प्रतिकूलता रूपी गर्मी * परामर्शक, जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय, लाडनूं-३४१३०६ (राजस्थान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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