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________________ महामंत्र नवकार की साधना और उसका प्रभाव : ३९ समस्या का समाधान, एकाग्रता, मंत्र वर्ण का साक्षात्कार, पवित्र वातावरण आदि की प्राप्ति होती है। णमो लोए सव्व साहूणं साधु अर्थात् निर्वाण मार्ग की साधना करने वाले अथवा स्वहित या परहित को साधने वाले होते हैं। इस पद्य का मंत्र जाप करने से गृह कलह का निवारण, पारिवारिक शान्ति, रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास तथा संकट दूर होता है। इससे पुराना ज्वर समाप्त हो जाता है। भाव स्पर्श का अनुभव करने से द्रव्य स्पर्श की लालसा समाप्त होती है। राहु, केतु और शनि ग्रहजनित समस्या का निवारण, एकाग्रता, मंत्र वर्ण का साक्षात्कार, पवित्र वातावरण आदि की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त इस सम्पूर्ण महामंत्र का एक साथ जाप करने से यश की प्राप्ति, आरोग्य, सौभाग्य-वृद्धि, सुख-समृद्धि की प्राप्ति, सम्पदा की प्राप्ति, इच्छा की प्राप्ति, सम्पूर्ण शरीर की रक्षा, सर्व उपद्रव का विलय, क्लेश का नाश, व्याग्र भय निवारण, चोर और बैरी द्वारा कुल समस्या से मुक्ति, अग्नि का स्तम्भन, स्वयं में आकर्षण पैदा करना, ज्वर नाश, विष नाशक मंत्र सिद्धि का अनुभव आदि अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यद्यपि इस मंत्र का यथार्थ लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति है तो भी लौकिक दृष्टि से ये समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है, अतः प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन नवकार मंत्र का जाप करना चाहिए। कहा भी गया है - ननु उवसग्गे पीड़ा कूरग्गह - दंसणं भवो संका। जइ वि न हवंति एए, तह वि सगुझं भणिज्जासु।। अर्थात् उपसर्ग, पीड़ा, क्रूर, ग्रह-दर्शन, भय, शंका आदि यदि न भी हो तो भी शुभ ध्यानपूर्वक नवकार मंत्र का जाप या पाठ करने से परमशान्ति प्राप्त होती है। सभी प्रकार के सुखों को देने वाला है यह मंत्र आत्मकल्याण के साथ सभी प्रकार के अरिष्टों को दूर रखता है और सभी सिद्धियों को प्रदान करता है। यह कल्पवृक्ष है। जो जिस प्रकार की भावना रखकर साधना करता है उसे उसी प्रकार का फल प्राप्त होता है। जीवन की आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं जो अधिकतर मानसिक दुर्बलताओं से उत्पन्न होती हैं उनको सुलझाने में नवकार महामंत्र का चमत्कारिक प्रभाव प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। नवकार स्मरण से अमुक लोगों के रोग, दरिद्रता, भय, विपत्तियां दूर होने की अनुभव-सिद्ध घटनाएं, मन चाहे काम आसानी से बन जाने के अनुभव सुने जाते हैं। अतः यह निश्चित रूप से माना जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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