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श्रमण, वर्ष ५९, अंक १/जनवरी-मार्च २००८
इस पद्य का जप करने से ऋद्धि-सिद्धि, स्मरण शक्ति, भावात्मक शुद्धि, मानसिक शान्ति, दूरस्थ वस्तु का प्रत्यक्षीकरण, इन्द्रिय विकास, शुक्र-चन्द्र ग्रह जनित समस्या का समाधान, आवेश नियंत्रण, एकाग्रता, पवित्र वातावरण, मंत्र वर्ण का साक्षात्कार, मंत्र-सिद्धि का अनुभव तथा सवर्तोमुखी विकास आदि की प्राप्ति होती है। णमो सिद्धाणं
जिस आत्मा के सभी इच्छित कार्य पूर्ण हो गये हों तथा जिसके ध्यान चिन्तण-स्मरण से सब कार्य सिद्ध होते हों, वह परम आत्मा सिद्ध कहलाती है। अरिहंत परमात्मा चार घाती कर्म का नाश करने के पश्चात् शेष चार अघातीय कर्मों, वेदनीय, नाम, गोत्र आयुष्य का नाश होने पर सिद्ध भगवान बनते हैं। अरिहंत और सिद्ध ये दो देवाधिदेव हैं।
इस पद्य का मंत्र जाप करने से संकल्प की दृढ़ता का विकास, अन्तर्दृष्टि का विकास, दर्शन शक्ति का विकास, एकाग्रता, मंत्र वर्ण का साक्षात्कार, पवित्र वातावरण का निर्माण, सूर्य-मंगल ग्रह की समस्या का समाधान, कुण्ठा-निराशा आदि दूर होता है। णमो आयरियाणं ___आचार्य धर्मदेव होते हैं। चतुर्विध संघ को सम्यक्-दर्शन-ज्ञान-चारित्र धर्म का उपदेश करना, सदाचार, संयम, नियम, अनुशासन का पालन करना एवं करवाना आचार्य का कार्य है। आचार्य धर्मसंघ रूपी नौका के नायक तथा नाविक होते हैं। इस पद्य का मंत्र जाप करने से स्मृति का विकास, चयापचय का संतुलन, विधायक विचार, शक्य इच्छा की पूर्ति, गुरु ग्रह जनित समस्या का समाधान, दिव्य सुरभि का अनुभव, एकाग्र मंत्र वर्ण का साक्षात्कार, पवित्र वातावरण की प्राप्ति आदि प्राप्त होते हैं। णमो उवज्झायाणं
प्राकृत के उवज्झाय शब्द का संस्कृत रूप उपाध्याय है। उप अर्थात् समीप + अध्याय अर्थात् अध्ययन करना। जिनके पास शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया जाए वे उपाध्याय एक प्रकार की ज्ञान ज्योति हैं। उपाध्याय प्रज्वलित दीपक के समान हैं, जो दूसरे अप्रकाशित दीपकों को अपनी ज्ञान ज्योति के स्पर्श से प्रकाशमान बनाते हैं। ज्ञान दान का पुण्य कार्य उपाध्याय करते हैं।
इस पद का जाप करने से, ज्ञान का विकास, बौद्धिक और आन्तरिक ज्ञान की प्राप्ति, आनन्द की अनुभूति, शुभ चिन्तन, मानसिक आह्लाद, प्रसन्नता, बुध ग्रह की
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