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श्रमण, वर्ष ५९, अंक १/जनवरी-मार्च २००८
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की अनेक निष्पत्तियां हैं जो आन्तरिक व बाह्य या मानसिक व शारीरिक हैं, जैसे- मन की प्रसन्नता, चित्त की संतुष्टि, स्मृति शक्ति का विकास, बौद्धिक शक्तियों का विकास, संकल्प शक्ति का विकास आदि।
नवकार महामंत्र का जाप करने के लिए सर्वप्रथम आठ प्रकार की शुद्धियों का होना आवश्यक है- द्रव्यशुद्धि,क्षेत्रशुद्धि, समयशुद्धि, आसनशुद्धि, विनयशुद्धि, मनशुद्धि, वचनशुद्धि व कायशुद्धि। इस महामंत्र का जाप यदि खड़े होकर करना हो तो तीन-तीन श्वासोच्छ्वास में एक बार पढ़ना चाहिए। एक सौ आठ बार के जाप में कुल तीन सौ चौबीस श्वासोच्छ्वास लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त इस महामंत्र के जाप करने की अन्य विधियां हैं- कमल जप, हस्तांगुली जप और माला जप।
कमल जप- सर्वप्रथम अढरदल कमल पर पूर्व दिशा की पंखुड़ी के प्रथम बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित करते हुए क्रमशः १२ बिन्दुओं पर नवकार मंत्र जपना चाहिए। एक पखुड़ी में १२ बिन्दु अर्थात् पखुड़ियों पर जाप करने के बाद मध्य में भी १२ बिन्दुओं पर क्रमशः णमोकार मंत्र का जाप करने से एक भाग पूरा हो जाता है, अर्थात् ९ x १२ = १०८ अभ्यास के बाद इसी कमल दल को हृदय में साक्षात् देखना चाहिए और एक-एक बिन्दु पर जप करते हुए एक माला पूर्ण करनी चाहिए।
__ अंगुलि जप- इस विधि में आवर्त और शंखावर्तविधि अधिक प्रयोग में लाई जाती है। इन दोनों ही विधियों में दिये गये अंकों के आधार पर एक से बारह तक क्रमशः नवकारमंत्र का जाप किया जाता है। नौ बार यह क्रिया करने
रावत से १२ x ९ = १०८ बार मंत्र जप की एक माला पूरी हो जाती है।
माला जप - इस विधि में पद्मासन या सुखासन आदि मुद्रा में बैठकर हृदय के पास अर्थात् आनन्द केन्द्र पर दाहिने हाथ के अंगूठे व मध्यम अंगुली से माला फेरनी चहिए। अन्तिम मन का पूर्ण होने पर वापस घुमाकर माला प्रारंभ करनी चाहिए, बीच के सुमेरु को लाँघना नहीं चाहिए।
इस प्रकार किसी भी विधि से जो उपयुक्त लगे उससे नवकार मंत्र का जाप किया जा सकता है।
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