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महामंत्र नवकार की साधना और उसका प्रभाव : ३५
१. नवकारमंत्र महामंत्र इसलिए है कि यह सुप्तात्मा को जागृत कर अध्यात्म
यात्रा को सम्पन्न करती है। नवकार महामंत्र कामनापूर्ति या इच्छापूर्ति का मंत्र नहीं है, अपितु यह वह मंत्र है जो कामना को समाप्त कर देता है। कामनापूर्ति के अनेक मंत्र हैं, जैसे- सरस्वती मंत्र, लक्ष्मी मंत्र, रोग
निवारण मंत्र, सर्पदंश मुक्ति मंत्र आदि। २. इस मंत्र के महामंत्र होने में दूसरा हेतु यह है कि यह एक मार्ग है। मोक्ष
मार्ग के चार चरण हैं- सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान, सम्यक्-चारित्र
और सम्यक्-तप। अर्हत् अनन्त ज्ञान-दर्शन-चारित्र और शक्ति रूपी चतुष्टयी का समन्वित रूप होता है और वही मोक्ष का मार्ग है। अत: यह
मंत्र मार्गदाता है। यही कारण है कि इसे महामंत्र कहा जाता है। ३. इसका तीसरा हेतु है- दुःख मुक्ति के सामर्थ्य का होना। ४. चौथा हेतु है- इससे वृत्तियों का ऊर्वीकरण, बुद्धि का ऊर्ध्वारोहण
आदि होता है।
पूजन का आरम्भ नवकार महामंत्र से होता है। पाँचों परमेष्ठियों को एक साथ नमस्कार होने से यह मंत्र पंच-परमेष्ठी कहलाता है। पंच-परमेष्ठी के अनादि होने के कारण इस मंत्र को अनादि माना जाता है। यह महामंत्र संसार का सार है- जन्म-मरण रूप संसार से छूटने का सुकर अवलम्बन और सारतत्त्व है, तीनों लोकों में अनुपम है। इस मंत्र का जाप करने से किसी प्रकार का पाप नष्ट हुए बिना नहीं रहता है। जिस प्रकार अग्नि का एक कण घास-फूस के बड़े-बड़े ढेरों को नष्ट कर देता है उसी प्रकार यह मंत्र भी सभी पापों को नष्ट करने वाला होने के कारण पापारि कहलाता है, अर्थात् यह मंत्र कर्मों का निर्मूल विनाश करने वाला है।
नवकारमंत्र के एक अक्षर का भी भाव सहित स्मरण करने से सात सागर तक भोगे जाने वाला पाप नष्ट हो जाता है। एक पद का भावसहित स्मरण करने से पचास सागर तक भोगे जाने वाले पाप का नाश होता है और समग्र मंत्र का भक्ति भाव सहित विधिपूर्वक स्मरण करने से पाँच सौ सागर तक भोगे जाने वाले पाप का नाश हो जाता है। अभक्त प्राणी भी इस मंत्र के स्मरण से स्वर्गादि के सुखों को प्राप्त करता है।
नवकार महामंत्र की आराधना अनेक रूपों में की जाती है। इसमें किसी व्यक्ति का नहीं, अपितु शुद्ध आत्मा का ध्यान किया जाता है। इसमें पाँच पद और पैंतीस अक्षर हैं। इसका संक्षिप्त रूप ॐ है जिसमे पाँचों पद समाहित हैं 'अ+ आ = आ + उ = ओ + म = ॐ। ॐ पूर्ण परमेष्ठी का वाचक है। मंत्र के तीन तत्त्व हैं- शब्द, संकल्प और साधना। इन तीनों के होने पर ही मंत्र सिद्धि हो पाती है। मंत्र आराधना
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