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महामंत्र नवकार की साधना और उसका प्रभाव डॉ० सुधा जैन*
श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ जनवरी-मार्च २००८
साधना के अनेक प्रकार हैं, जैसे- जप, तप, तंत्र, मंत्र आदि। सबसे बड़ी साधना है अध्यात्म की, भीतर प्रवेश करने की अर्थात् जो साधना व्यक्ति को बाहरी यात्रा से हटाकर भीतर की यात्रा करा सके, वह साधना सबसे बड़ी साधना है | चेतना का सम्पर्क जितना इसके माध्यम से होता है उतना किसी के माध्यम से नहीं होता । हम जिस सत्य को इस माध्यम से जान सकते हैं अन्य किसी माध्यम से नहीं जान सकते। यदि हम भीतर की यात्रा नहीं करते हैं तो अध्यात्म के स्थान पर कर्मकाण्ड विकसित होता है अर्थात् अध्यात्म की ज्योति कर्मकाण्ड की राख से ढक जाती है, प्रकाश नीचे दब जाता है और कालिमा ऊपर आ जाती है।
भीतर की यात्रा करने का अर्थ है- प्राण को भीतर ले जाना अर्थात् जो ऊर्जा बाहर की तरफ प्रवाहित हो रही होती है उसे दिशा परिवर्तित कर भीतर ले जाना अर्थात् विद्युतीय ऊर्जा को पूरे शरीर में ले जाना। मन के साथ ही प्राण चलता है और प्राण जहाँजहाँ जाता है वहीं ऊर्जा जाती है। जहाँ ऊर्जा का प्रवाह होता है वहाँ किसी प्रकार का दोष ठहर नहीं पाता है, रोग रह नहीं पाता । प्राण या ऊर्जा की कमी होने या असंतुलन के कारण ही रोग होते हैं। जब संतुलन हो जाता है तो सारे दोष नष्ट हो जाते हैं। भीतर जाने का अर्थ ही है- ऊर्जा का विकास, ऊर्जा का पूरे शरीर में अवगाहित होना ।
नवकार की साधना प्रारम्भ करने से पूर्व आवश्यक है कि व्यक्ति का आहार शुद्ध हो, मन और वाणी शुद्ध हो । मन और वाणी भी आहार पर ही आधारित है। कहा भी गया है- 'जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन'। आहार की अधिक मात्रा एवं अपथ्य आहार से शरीर में मल संचित होते हैं, जिससे नाड़ी संस्थान शुद्ध नहीं रह पाता है और मन का निर्मल रहना भी असंभव हो जाता है, अतः सम्यक् एवं संतुलित आहार का ध्यान रखना आवश्यक है।
मनुष्य का सबसे बड़ा बल आत्मबल है। ध्यान, स्मरण, जप, स्तुति, भक्ति, उपासना आदि सभी अनन्त आत्मबल को जगाने के साधन हैं । भगवान, गुरु एवं मंत्र आदि के सहारे हम अपनी आत्म-शक्तियों को और अधिक विकसित एवं प्रखर बना सकते हैं। विकसित और प्रखर आत्मशक्ति ही सब चमत्कारों की जननी है।
* वरिष्ठ प्राध्यापक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, आई. टी. आई. मार्ग, वाराणसी - २२१००५
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