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श्रमण, वर्ष ५९, अंक १/जनवरी-मार्च २००८
प्रज्ञापना की विषयवस्तु प्रज्ञापना पद
छत्तीस पदों वाले प्रज्ञापनासूत्र का प्रथम पद प्रज्ञापना पद है । इसमें जैन दर्शन सम्मत जीवतत्त्व और अजीवतत्त्व की प्रज्ञापना --प्रकर्षरूपेण प्ररूपणा भेदप्रभेद बताकर की गयी है । सूत्र २ में ३६ पदों के विवेचन के बाद सूत्र ३ में प्रज्ञापना के स्वरूप और प्रकार की चर्चा की गयी है । सूत्र ४ में अजीव प्रज्ञापना के स्वरूप
और प्रकार बताये गये हैं । अजीव प्रज्ञापना जीव प्रज्ञापना के पूर्व की गयी है, क्योंकि इसमें जीवतत्त्व की अपेक्षा वक्तव्य अल्प है । पश्चात् अजीवों के निरूपण में रूपी, अरूपी नामक दो भेद और उनके प्रभेद किये गये हैं । सूत्र ५-१३ तक अरूपी अजीव प्रज्ञापना उसके भेद-प्रभेदों - धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश और अद्धासमय (काल) की प्रज्ञापना की गयी है । रूपी अजीवप्रज्ञापना चार प्रकार की हैं- स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु पुद्गल । सूत्र १४ में जीवप्रज्ञापना के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसके दो प्रमुख भेदों -असंसार समापन एवं संसार समापन जीवों की चर्चा की गयी है। सूत्र १५ से १७ तक असंसार समापन्न जीवों की प्रज्ञापना की गयी है और सिद्ध जीवों के १५ भेद बताये गये हैं। सूत्र १८ से १४७ तक संसार समापन्न जीवों के भेद-प्रभेदों की चर्चा की गयी है । इसमें एकेन्द्रिय संसारी जीवप्रज्ञापना के पांच प्रकारों की चर्चा है- पृथ्वीकायिक (२०-२५), अप्कायिक (२६-२८), तेजस्कायिक (२९-३१), वायुकायिक (३२-३४) और वनस्पतिकायिक (३५५३) । वनस्पतिकायिक जीवों में प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीवों के १२ भेद,; साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीवों में वृक्षादि के १२ भेदों की व्याख्या, अनन्तजीवों वाली वनस्पति के लक्षण, बीज का जीव मूलादि का जीव बन सकता है या नहीं? तथा साधारण शरीर वनस्पतिकायिक जीवों का लक्षण बताया गया है (५४-५५)। सूत्र ५६ से ६० तक द्वीन्द्रिय संसार समापन्न जीवों की जाति एवं योनियां, त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय जीवों की प्रज्ञापना, चतुर्विध पंचेन्द्रिय तथा नैरयिक जीवों की प्रज्ञापना की गयी है। सूत्र ६१ से ६८ तक समग्र पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों के भेद,६९ से ८१ थलचर पंचेन्द्रिय,८२-८५ आसालिकों की उत्पत्ति,८६-९१ खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक के विविध भेद,९२-९७ तक समग्र मनुष्य जीव, सम्मूर्छिम मनुष्य उत्पत्ति के स्थान, गर्भज के तीन प्रकार, अन्तर्दीपिक मनुष्य के २८ भेद, अकर्मक मनुष्य के तीस भेद तथा कर्मभूमक मनुष्य के दो भेद- आर्य और म्लेच्छ की प्रज्ञापना की गयी है। सूत्र ९८ से १०६ में म्लेच्छ-आर्य के भेद, ऋद्धिप्राप्त आर्यों के ६ भेद, ऋद्धि-अप्राप्त आर्यों के ९ भेद, क्षेत्रार्य के २६ भेद, जात्यार्य, कुलार्य के ६
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