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________________ प्रज्ञापना- सूत्र एक समीक्षात्मक अध्ययन : १७ प्रज्ञापनासूत्र मूल तथा मुनि श्री अमोलकऋषिकृत हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुआ है I इसमें प्रज्ञापना मूल की वाचना अति शुद्ध है। मुनि श्री अमोलकऋषि ने यहां पहले की रायश्रीधनपति सिंहजी की आवृत्ति का अनुसरण नहीं किया है । ४. वि.सं. १९९१ में पं० श्रीभगवानदास हर्षचन्द्र द्वारा सम्पादित तीन भागों में प्रकाशित आवृत्ति । इस ग्रंथ में प्रज्ञापनासूत्र मूल, मूल वाचना का गुजराती अनुवाद प्रकाशित हुआ है । इस आवृत्ति की मूल वाचना तैयार करने में समिति की आवृत्ति को सामने रखकर विशेष संशोधन के लिये अहमदाबाद के श्री शांतिसागर भंडार की एक सटीक और त्रुटित प्रज्ञापनासूत्र की हस्तलिखित प्रत का उपयोग किया गया है। मौलिक शुद्ध पाठ होते हुए भी इसमें कहीं-कहीं छोटी-मोटी त्रुटियां रह गयी हैं। ५. वि.सं. १९९८ (वीर नि. सं. २४६८) में आगम मन्दिर ( पालिताणा ) में शिला पर उत्कीर्ण समस्त आगमों को प्रकाशित करने के उद्देश्य से मर्यादित संख्या में प्रकाशित आगमरत्नमंजूषा नामक महाग्रन्थ के अन्तर्गत प्रकाशित प्रज्ञापना की आवृत्ति । सूत्रपाठों को संक्षिप्त करने में कहीं-कहीं मूल स्वरूप विकृत-सा हो गया है । यह आवृत्ति भी संतोषजनक नहीं है। ६. मुनिराजश्री पुष्पभिक्षु - फूलचन्द्र द्वारा सम्पादित 'सुत्तागमें' नामक ग्रंथ के दूसरे अंश में अंग आगमों के अलावा २१ आगम प्रकाशित हुए हैं । उसमें प्रज्ञापना सूत्र भी प्रकाशित है । उक्त सुत्तागमें का दूसरा भाग वि.सं. २०११ में सूत्रागम समिति, asia द्वारा प्रकाशित है । सुत्तागमे के पहले भाग की प्रस्तावना लेखक मुनिश्री जिणचन्द्र भिक्खू हैं तथा दूसरे भाग के सम्पादक लेखक श्रीपुष्पभिक्षुजी स्वयं हैं । इसमें (१) पाठ शुद्धि का पूरा-पूरा खयाल रखा गया है (२) इसके सम्पादन में शुद्ध प्रतियों का प्रयोग किया गया है (३) पाठान्तर नवीन पद्धति से दिये गये हैं । परन्तु मुनि पुण्यविजयजी के अनुसार इन नियमों के पालन का अभाव इस आवृत्ति में है । ७. ई० सन् १९६९-७१ में मुनि श्रीपुण्यविजयजी, पं. दलसुख मालवणिया एवं पं. अमृतलाल भोजक द्वारा सम्पादित जैन आगम ग्रन्थमाला श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई द्वारा दो भागों में 'पण्णवणासुत्तं' नाम से प्रकाशित आवृत्ति । यह आवृत्ति अब तक की प्रकाशित सभी आवृत्तियों में सर्वथा शुद्ध है। मुनि श्री पुण्यविजयजी ने इसमें इसके पूर्व की समस्त आवृत्तियों का लेखा-जोखा निष्पक्ष प्रस्तुत किया है। इसके अतिरिक्त आगमसुधा-सिन्धु (लाखाबावल - १९७७), उवांगसुत्ताणि ( आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती - १९८७), आगमसुत्ताणि, संपा० मुनि दीपरत्नसागर, अहमदाबाद १९९५), आगमदीप ( मुनि दीपरत्नसागर, अहमदाबाद १९९७) आदि प्रज्ञापना के प्रमुख प्रकाशित संस्करण हैं । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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