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________________ १६ 1. श्रमण, वर्ष ५९, अंक १ / जनवरी-मार्च २००८ १२. प्रज्ञापनासूत्र भाषान्तर पं० भगवानदास हरखचंद द्वारा रचित यह भाषान्तर वि.सं. १९९१ में प्रकाशित हुआ । ऊपर सूचित प्रज्ञापनासूत्र की व्याख्याओं के अतिरिक्त प्रज्ञापनाचूर्णि भी थी, किन्तु उसकी हस्तप्रत उपलब्ध नहीं है। प्रज्ञापनासूत्रसारोद्धार की हस्तप्रत का सूचन पिटर्सन रिपोर्ट भाग एक के 'परिशिष्ट'-- खंभात के श्रीशांतिनाथ भंडार की सूची में- पृ० ६३ में है । यह आचार्य अभयदेवकृत 'प्रज्ञापनोद्धार' अथवा 'प्रज्ञापनासंग्रहणी' दोनों ग्रंथों से भिन्न है । क्योंकि प्रज्ञापनासूत्रसारोद्धार एक गद्य रचना है जबकि प्रज्ञापनोद्धार पद्यमय रचना है । I १३. प्रज्ञापना पर्याय लाल भाई दलपतभाई विद्यामंदिर के मुनि पुण्यविजय संग्रह की ४८०१ नं. की हस्तप्रत 'सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय है जिसके प्रारम्भ में पंचवस्तुक पर्याय दिये गये हैं । उसके बाद आचारांग आदि का पर्याय पत्र २-ब से प्रारम्भ होता है । उसमें पत्र ५-अ से प्रज्ञापना की पर्याय प्रारम्भ होती है । इसमें ग्रंथकार ने जिसका पर्याय देना है उसके पद का नाम देकर उन-उन शब्दों के विवरण या पर्याय दिये हैं। इसमें सर्वप्रथम अठारहवें पद में से अनाहारक पद का विवरण है और पत्र ६ - ब में तो प्रज्ञापना की पर्याय समाप्त कर निशीथचूर्णि आदि की पर्याय दी गयी है । उसके पश्चात् पत्र ६३ - अ से पत्र ६४-ब तक में 'प्रज्ञापनाविवरणविषमपदपर्याय' है। लाल भाई दलपतभाई विद्यामंदिर के संग्रह की प्रत में विषमपदपर्याय की दो प्रकार की कृतियां संगृहीत हैं । यह प्रति भी अन्यान्य भण्डारों में उपलब्ध है । इसमें अनेक अशुद्धियां हैं तथा अनेक स्थलों पर पदच्छेद भी अशुद्ध हैं । प्रज्ञापना के प्रकाशित संस्करण १. वि.सं. १९४० मे ऋषि श्री नानकचंद जी द्वारा संपादित हुआ प्रज्ञापना सूत्र राय श्री धनपतिसिंह जी द्वारा सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ था । इस ग्रंथ में प्रज्ञापना सूत्र मूल, श्रीरामचन्द्रगणिकृत प्रज्ञापनासूत्र मूलपाठ का अनुवाद, आचार्यश्री मलयगिरिरचित प्रज्ञापनासूत्र टीका तथा परमानन्दर्षिकृत प्रज्ञापनासूत्र की भाषाटीका प्रकाशित हुई है। २. च. पू. पा. आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानन्दसूरिजी द्वारा संपादित और श्री आगमोदय समिति द्वारा दो भागों में प्रकाशित हुई प्रज्ञापनासूत्र की आवृत्ति । इस ग्रंथ में प्रज्ञापनासूत्र मूल तथा उसकी आचार्य श्री मलयगिरिरचित टीका प्रकाशित हुई है। इसमें पूर्व प्रकाशित आवृत्ति की अपेक्षा बहुत अशुद्धियां हैं । ३.वी.सं. २४४५ (वि.सं. १९७५) में मुनि श्री अमोलकऋषि द्वारा सम्पादित और लालाश्री सुखदेव सहायजी द्वारा प्रकाशित हुई आवृत्ति प्राप्त होती है। इस ग्रंथ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525063
Book TitleSramana 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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