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प्रज्ञापना- सूत्र एक समीक्षात्मक अध्ययन 10
७. श्रीधनविमलकृत टबो (बालावबोध )
इस टबो का रचना समय सं. १७६७ है । प्रज्ञापनासूत्र की भाषानुवाद कृतियों में सम्भवतः यह पहली रचना है । टब्बाकार ने आदि और अन्त में अपना संक्षिप्त परिचय दिया है जिससे यह ज्ञात होता है कि श्रीसोमविमलसूरि (सं. १५९१-१६३३)
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गच्छ में हुए श्री विनयविमलजी के शिष्य श्री धनविमल ने इस टबो की रचना की है । रचना का समय नहीं दिया गया है किन्तु ऐसा अनुमान है कि इसकी रचना १७वीं शती के उत्तरार्द्ध में हुई होगी ।
प्रज्ञापनासूत्रटबा की एक दूसरी हस्तप्रत लाल भाई दलपतभाई विद्यामंदिर के मुनि पुण्यविजय संग्रह में है । उसका क्रमांक २३२९ और लेखन सं. १९२० है। ८. श्रीजीवविजयकृत टबो ( बालावबोध )
इस बालावबोध की सूचना जिनरत्नकोश में है । जिनरत्नकोश के अनुसार इस स्तबक की रचना सं. १७८४ में हुई । इसकी एकाधिक प्रतें लाल भाई दलपतभाई विद्यामंदिर के मुनि पुण्यविजय संग्रह में क्रमांक १०५८-४९ पर हैं। लाल भाई दलपतभाई विद्यामंदिर संग्रह में इसका नं. २०९४ और श्रीकीर्ति मुनि संग्रह में नं. १०२१४, ११०७९ है ।
९. श्रीपरमानन्दकृत स्तबक
श्रीपरमानन्दकृत स्तबक-टबो राय धनपतसिंह बहादुर की प्रज्ञापना आवृत्ति में प्रकाशित है। इस टबो की रचना सं. १८७६ में श्री लक्ष्मीचंदसूरि के समय में श्री आनन्दचन्द्र के शिष्य परमानन्द ने की थी, ऐसा उल्लेख इसके अन्त में है ।
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१०. श्रीनानकचन्द्रकृत संस्कृत छाया
रायधनपतसिंह की आवृत्ति में टाइटिल में 'लोंकागच्छीय रामचंद्रगणिकृत संस्कृतानुवाद' ऐसा लिखा है। किन्तु प्रशस्ति में रामचंद्र गणि के शिष्य नानकचंद्र ने संस्कृतानुवाद किया है, ऐसा कहा गया है। इस नानकचंद्र ने प्रज्ञापना का संपादनसंशोधन किया था अत: उनके अस्तित्वकाल में प्रज्ञापना प्रकाशित हुई थी, अर्थात् ई. सन् १८८४ में वे विद्यमान थे ।
११. अज्ञातकर्तृक वृत्ति ?
इस वृत्ति की सूचना जिनरत्नकोश में है और इसकी अनेक प्रतें उपलब्ध हैं, ऐसा सूचन है ।
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