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श्रमण, वर्ष ५९, अंक १/जनवरी-मार्च २००८
मुख्य वक्ता ब्रह्मकुमारी अकादमी (माउंट आबू)के श्री मोहन सिंहल ने कहा कि विज्ञान से तरक्की तो हो रही है, लेकिन प्रदूषण भी बढ़ रहा है। इस विज्ञान ने आन्तरिक शक्तियों को कमजोर कर दिया है। इसके परिणाम को उन्होंने 'इस दौर में तरक्की के अंदाज निराले हैं, दिलों में अंधेरे हैं पर सड़कों पर उजाले हैं से व्यक्त किया।
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर रामजी सिंह, पूर्व कुलपति, जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं ,ने वैश्वीकरण के परिप्रेक्ष्य में आसन्न पर्यावरण संकट को बताते हुए जैन जीवन शैली को एक मात्र पार्यवरण संकट का निवारण माना। उन्होंने कहा कि जब तक व्यक्ति अहिंसावादी नहीं होगा, उसकी विचारधारा अनेकान्तवादी नहीं होगी,जब तक अपरिग्रहवादी जीवनशैली अंगीकार नहीं करेगा तब तक पर्यावरणीय आसन्न संकट का निवारण संभव नहीं है।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए संकटमोचन मंदिर के महंतवपर्यावरणविद् प्रोफेसर वीरभद्र मिश्र ने कहा कि इस तरह के आयोजनों से लोगों को प्रेरणा मिलेगी
और पर्यावरण प्रदूषण की मुक्ति में सहायता भी। इस मौके पर वेद विभाग के प्राध्यापक डॉ० उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी की पुस्तक 'यजुर्वेद में पर्यावरण तथा प्राकृत भाषा के मर्मज्ञ प्रोफेसर रामजी राय द्वारा सम्पादित शोध-पत्रिका प्राकृत भारती का विमोचन भी किया गया।
सम्मेलन के प्रारम्भ में वेद विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हृदयरंजन शर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन डॉ० सुमन जैन, उपाचार्य, हिन्दी विभाग, का०हि०वि०वि० ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन पार्श्वनाथ विद्यापीठ के डाइरेक्टर-इंचार्ज डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने किया।
सम्मेलन के दूसरे दिन २८-०३-२००८ को प्रात: ९.०० बजे से सायं ५.०० बजेतक समानान्तर पाँचसत्र चलाये गये जिसमें २५० शोध-पत्रों का वाचन हुआ।सत्र कीअध्यक्षताप्रोफेसरकमलेशकुमारजैन,जैन-बौद्धदर्शन विभाग,प्राच्यविद्यासंकाय, का०हि०वि०वि० डॉ० श्रीप्रकाशपाण्डेय,उपाचार्य,दर्शनएवंधर्मविभाग,का०हि०वि०वि०; डॉ० दीनानाथशर्मा,विभागाध्यक्ष,प्राकृत विभाग,गुजरातविश्वविद्यालय,अहमदाबाद; डॉ० कौशिक रावल,उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय,पाटणतथाडॉ० हरिनारायण तिवारी, जम्मू,नेकी। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की ओर सेडॉ. सुधा जैनने पर्यावरण और वनस्पतिः जैन धर्म के सन्दर्भ में विषय पर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया।
__ तीसरे दिन २९-०३-२००८ को सम्मेलन का समापन समारोह पार्श्वनाथ विद्यापीठ में आयोजित किया गया। प्रात: ९.०० बजे से मध्याह्न २.३० बजे तक पाँच सत्रों में १५० शोध-पत्रों का वाचन हुआ। सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर सीताराम दूबे, प्रा.भा.इ.सं. एवं पुरातत्त्व विभाग, का०हि०वि०वि०; प्रोफेसर कमलेश कुमार जैन,
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