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________________ श्रमण, वर्ष ५७, अक १ जनवरी-मार्च २००६ प्राकृत कथा-साहित्य में सांस्कृतिक चेतना डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव* - प्राचीन संस्कृति-कथाओं की आधारशिला बहुलांशत: दिव्यभूमि पर प्रतिष्ठापित की गई है। किन्तु, ठीक इसकी प्रतिभावना-स्वरूप प्राकृत-कथाओं की रचनाप्रक्रिया में दिव्यादिव्य शक्तियों की समन्विति को प्रमुखता दी गई है। कारण, संस्कृत के कथाकार वेदों और उपनिषदों में प्रतिपादित ईश्वरीय शक्ति की सर्वोपरिता की अवधारणा से आक्रान्त थे; परन्तु इसके विपरीत प्राकृत-कथाकारों ने मानवशक्ति की सर्वोपरिता को लक्ष्य किया था। इसीलिए, ईश्वरत्व के विनियोग अथवा ईश्वर के कर्तृत्व की अपेक्षा उसके व्यक्तित्व में विपुल विश्वास के प्रति प्राकृतकथाकारों का आग्रह अधिक सजग रहा। संस्कृत-कथाकार जहाँ केवल अतिलौकिक भावभूमि के पक्षधर बने, वहीं प्राकृत-कथाकारों ने लौकिक भावधारा को अतिलौकिक पृष्ठभूमि से जोड़कर अपने मानवतावादी दृष्टिकोण का संकेत किया। ___ प्राकृत और संस्कृत के कथाकारों की सैद्धान्तिक मान्यताओं के उपर्युक्त वैचारिक स्वातन्त्र्य के मूल में न केवल साम्प्रदायिक, अपितु अपने-अपने युग का, अर्थात् समसामयिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवेश का प्रभाव भी सक्रिय रहा है, फलतः उन्होंने अपनी-अपनी सांस्कृतिक चेतना और चिन्तन या मानसिक अवधारणा के अनुकूल भाव-जगत् में संचरण करते हुए यथास्वीकृत पद्धति से कथा-साहित्य को नूतन अभिनिवेश दिया, नई-नई दिशाएँ दी और उसके नये-नये आयाम निर्धारित किये। किन्तु सामान्य जनजीवन से सम्बद्ध प्राकृतकथाकारों ने ततोऽधिक विकासवादी दृष्टि का परिचय दिया, अर्थात् उन्होंने मानवनियति को दैवी-नियति से सम्बद्ध न मानकर, लोकभावना को कर्मवाद पर आधृत सामाजिक गतिशीलता की ओर प्रेरित किया; अदिव्य को दिव्य से मिलाकर उसे दिव्यादिव्यत्व प्रदान किया। चिराचरित सार्वभौमतावादी युगधर्म को विकसित कर उसमें लोकजीवन की लोकात्तरवादी चेतना की व्यापक विनियुक्ति प्राकृत-कथाओं की मौलिक विशेषता है, जो अपने साथ, सांस्कृतिक और साहित्यिक समृद्धि की दृष्टि से, सारस्वत क्षेत्र के लिए अपूर्व उपलब्धि की गरिमा का संवहन करती है। *३७, स्टेट बैंक ऑफिसर्स कॉलोनी, काली मन्दिर मार्ग, हनुमाननगर, कंकड़बाग, पटना-८०००२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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