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________________ २२ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६ ' (i) नरक एवं देवलोक तथा इनमें रहने वाले नारक एवं देवों का वर्णन। तत्त्वार्थसूत्र के तृतीय एवं चतुर्थ अध्याय क्रमश: उपर्युक्त विषयों का वर्णन करते हैं, जिसे आचार्य श्री तुलसी ने सम्भवत: आधुनिक युग में अनावश्यक समझकर छोड़ दिया है। (ii) ज्ञानावरणादि अष्टविध कर्मों के बन्ध के अलग-अलग कारणों का निर्देशा तत्त्वार्थसूत्र के षष्ट अध्याय में (सूत्र ११ से २६) आठों प्रकार के कर्मों के पृथक-पृथक बन्ध कारणों का निर्देश है, जिसे जैन सिद्धान्त-दीपिका में छोड़ दिया गया है। (iii) श्रावक के १२ व्रतों के अतिचार। तत्त्वार्थसूत्र के सप्तम अध्याय में (सूत्र २० से ३१) श्रावक के व्रतों के अतिचारों का नामोल्लेख है, जबकि जैन सिद्धान्त-दीपिका में इनकी कोई चर्चा नहीं है। (iv) अष्टविध कर्मों की ९७ उत्तर प्रकृतियों के नाम। जैन सिद्धान्तदीपिका में इन उत्तर प्रकृतियों के नाम परिशिष्ट में हिन्दी में दिए गए हैं, जबकि तत्त्वार्थसूत्र के अष्टम अध्याय में इन नामों को सूत्रों (५-१४) में गूंथा गया है। इसमें सभी कर्मों की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति का भी उल्लेख है, जबकि जैन सिद्धान्त-दीपिका में लेखक ने इन्हें स्थान नहीं दिया है। प्रस्तुत निबन्ध में दोनों ग्रन्थों (तत्त्वार्थसूत्र और जैन सिद्धान्त-दीपिका) में चर्चित ज्ञान और ज्ञेय के सम्बन्ध में तुलनात्मक विचार करना ही प्रमुख लक्ष्य है। ज्ञान निरूपण जैन दर्शन में प्रतिपादित ज्ञान एवं इसके भेदों में कहीं कोई मतभेद नहीं है, इसलिए ऐसा मतभेद इन दोनों ग्रन्थों में भी नहीं हो सकता। दोनों ही ग्रन्थ सम्यग्ज्ञान को मोक्षमार्ग में सम्मिलित करते हैं तथा उसके पाँच भेदों का निरूपण करते हैं। ज्ञान के पाँच प्रकार हैं- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्याय ज्ञान और केवल ज्ञान। दोनों ग्रन्थों में यह तुलना अवश्य हो सकती है कि उनका वर्णनगत वैशिष्ट्य क्या है, यथा १. तत्त्वार्थसूत्र में सम्यग्दर्शन का तो लक्षण दिया गया है, किन्तु सम्यग्ज्ञान का लक्षण नहीं दिया गया। जैन सिद्धान्त-दीपिका में इसका लक्षण दिया गया है'यथार्थबोध: सम्यग्ज्ञानम्।' यथार्थ बोध सम्यग्ज्ञान है। किन्तु यह लक्षण आगमपरम्परा में मान्य सम्यग्ज्ञान की पूर्ण व्याख्या नहीं करता। आगम के अनुसार सम्यग्दर्शन होने पर ही ज्ञान सम्यक् होता है। उसकी सम्यक्ता अर्थ के अनुरूप होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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