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तत्त्वार्थसूत्र का पूरक ग्रन्थ : जैन सिद्धान्त-दीपिका : २१
(i) चतुर्थ प्रकाश में कर्म की बन्ध, उद्वर्तना, अपर्वतना आदि दश अवस्थाओं का वर्णन। तत्त्वार्थसूत्र में इनका उल्लेख नहीं है, जबकि जैन सिद्धान्त-दीपिका में प्रत्येक अवस्था को स्पष्ट किया गया है। (द्रष्टव्य सूत्र - ५ एवं उसकी वृत्ति)।
(ii) सप्तम प्रकाश में १४ गुणस्थानों का वर्णन। तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थानों का उल्लेख नहीं हुआ है, जैन सिद्धान्त-दीपिका में प्रत्येक गुणस्थान का लक्षण सूत्रबद्ध किया गया है। (द्रष्टव्य सूत्र २ से १६), तत्त्वार्थसूत्र में असंख्यगुण अधिक निर्जरा के जिन सम्यक्दृष्टि श्रावक आदि दश स्थानों का उल्लेख (९४७) हुआ है, उसका निरूपण जैन सिद्धान्त-दीपिका में अलग से हुआ है। (द्रष्टव्य सप्तम प्रकाश, सूत्र १८)
(iii) अष्टम प्रकाश में देव, गुरु एवं धर्म का विवेचन। तत्त्वार्थसूत्र में धर्म का विवेचन तो नवम अध्याय में (सूत्र ६) हुआ है, किन्तु देव एवं गुरु को पृथक से महत्त्व नहीं मिला है। आचार्य श्री तुलसी ने जैन सिद्धान्त-दीपिका में एक पूरा अध्याय देव, गुरु एवं धर्म की विवेचना में लगाया है। उन्होंने अर्हन् को देव (अर्हन् देवः, ८. १), निम्रन्थ को गुरु (निर्ग्रन्थों गुरु, ८.२) एवं आत्मशुद्धि के साधन को धर्म (आत्म शुद्धि साधन धर्मः, ८.३) कहा है। धर्म के एक, दो, तीन, चार, पाँच एवं दस प्रकारों का निरूपण किया है। धर्म के दस प्रकार वे ही क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि हैं, जिनका उल्लेख तत्त्वार्थसूत्र में भी हुआ है (९.६) किन्तु एक, दो, तीन, चार एवं पाँच प्रकारों का संयोजन नया है। धर्म के एक प्रकार में अहिंसा का, दो प्रकारों में श्रुत एवं चारित्र का तथा संवर एवं निर्जरा का उल्लेख है। तीन प्रकारों में स्वधीत, सुध्यात, एवं सुतपस्थित का, चार प्रकारों में ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप का तथा पाँच प्रकारों में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, बह्मचर्य एवं अपरिग्रह का उल्लेख है। (द्रष्टव्य सूत्र ५-१०)
(iv) दशम प्रकाश में प्रमाण, नय एवं निक्षेप के लक्षण देते हुए चार प्रकार के निक्षेपों का विवेचन किया गया है। तत्त्वार्थसूत्र में नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भाव निक्षेप का उल्लेख (१.५) मात्र है, जबकि दीपिका में प्रत्येक का लक्षण भी दिया गया है (सूत्र ६-९)। तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय में निरूपित अनुयोगों के दो सूत्रों (७ एवं ८) का समावेश यहां पर एक ही सूत्र (दशम प्रकाश, सूत्र ११) में कर दिया गया है।
तत्त्वार्थसूत्र के जिन विषयों की जैन सिद्धान्त-दीपिका में चर्चा नहीं की गई है, वे मुख्यत: इस प्रकार हैं
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