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________________ १६ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६ अर्थात् हे युवतियों! प्रणयमान को छोड़ो, तथा अपने प्रेमियों में प्रेम भरीउत्सुकतापूर्ण दृष्टि को लगाओ, क्योंकि उन्नत स्तनों से युक्त जवानी पांच अथवा दस दिन की ही है। इस प्रकार कोयल के मधुर तान के बहाने कामदेव की सर्वव्यापी आज्ञा मानो जो चैत्र महोत्सव के द्वारा संसार में प्रसारित की जा रही है। सभ्य समाज में सभा का आयोजन मनोरंजन का उत्कृष्ट संसाधन था। काव्यपाठादि का प्रयोग होता था। राजा की सभा में विदूषक, विचक्षणा, सुलक्षणा आदि अपनी प्रतिभा वैशिष्ट्य के अनुसार काव्य पाठ करते हैं। राजा के मनोरंजन के लिए वैतालिक स्तुतिगान करते थे। क्रीडोद्यान में क्रीड़ा करना, दोला अथवा झूला झूलना, शुक आदि पक्षियों का पालनादि मनोरंजन के प्रमुख संसाधन थे। विवाह - उस समय विवाह एक पवित्र संस्कार के रूप में प्रतिष्ठित था। एक विवाह के साथ बहुविवाह की भी प्रथा प्रचलित थी। नायक चण्डपाल देवी के होते हुए भी यौवन सुन्दरी कर्पूरमञ्जरी से चामुण्डा के मंदिर में विवाह करता है। अन्तर्जातीय विवाह प्रथा भी प्रचलित थी। कवि राजशेखर स्वयमेव ब्राह्मण थे लेकिन उनका विवाह अवन्ती सुन्दरी नामक एक क्षत्रिय कन्या के साथ हुआ था। वह चौहानवंश की कमारी थी और राजशेखर यायावरवंशीय ब्राह्मण थे। अवन्ती सुन्दरी सर्वांगलावण्यवती युवती तो थी ही कला प्रेमी भी थी। उसी के आदेश से कर्पूरमञ्जरी का प्रथम अभिनय किया गया था। पारिपार्श्विक कहता है - चाहुआणकुलमउलिमालिआ राअसेहरकइंद गेहिणी। भत्तुणो किइमवंतिसुंदरी सा पउंजइउमेअमिच्छतिइ२३॥ __ अन्य प्रथाएं: तत्कालीन समाज में अनेक प्रकार की लोकरीतियां एवं सामाजिक प्रथाएं प्रचलित थीं। विवाह प्रथा के अतिरिक्त दास प्रथा भी थी। अनेक दास-दासी संपन्न लोग सेवा के लिए रखते थे। विचक्षणा और सुलक्षणा दोनों बहनें राजा की दासियां हैं, जो न केवल सेवा-पारायण है अपितु शास्त्रमर्मज्ञ भी हैं। दासी को सैरन्ध्री (१/३६) भी कहते थे। एक विशिष्ट प्रथा का भी उल्लेख मिलता है - 'खलखंड। नायिका कर्पूरमञ्जरी अपनी मां शशिप्रभा की खलखंड से खरीदी गई पुत्री है। वह स्वयं कहती है - 'तेहिं अहं खलखंडेहिं कीणिदा दुहिद त्ति बुच्चामि२४ जिन माताओं के सन्तान जीवित नहीं रहती थीं वे माताएं अपने सद्यःजातपुत्र को किसी को दे देती थीं और उसके बदले में धन देकर पुन: वापस सन्तान को खरीद लेती थीं - यह प्रथा ही खलखंड प्रथा है। मृत्युपरान्त मृतक के नाम पर तिलांजलि या जलांजलि देने की प्रथा का उल्लेख भी मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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