SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ / जनवरी-मार्च २००६ एक स्नानशारी में विद्यमान कर्पूरमञ्जरी सामाजिकों के चित्त को बरबस अपहरण कर लेती है, वह चित्त पर अधिकार कर लेती है - एक्केण पाणिणलिणेण णिवेसअंती वत्थंचलं घणथणत्थलसंसमाणं । चित्ते लिहिज्जदि ण कस्स वि संजमंती अण्णेण चंकमणओ चलिअं कडिल्लं ५ || आभूषणः तत्कालीन समाज में आभूषणों का बाहुल्य था । यद्यपि सामाजिक छइल्लजनों को निसर्ग रमणीयता काम्य थी फिर भी भूषणों द्वारा शोभा समुन्मीलन की बात स्वीकृत थी । निसर्ग सौन्दर्य सम्पन्न व्यक्ति के शरीर में ही आभूषणों से शोभा का संवर्द्धन होता था निस्सग्गचंगस्स वि माणुसस्स सोहा समुम्मिलइ भूसणेहिं । १६ आभूषणों में एक्कावली ( पृ० ४४), नुपूर ( पृ० ४९), कंचीलता, कर्णोत्पल (१.३४, २.३७) आदि का अनेक बार वर्णन मिलता है। स्नानावस्था में ध्यानविमान से आगत कर्पूरमञ्जरी का देवी प्रभूत शृंगार करती है । अनेक आभूषणों एवं बहुमूल्य वस्त्रों से सजाती है। राजा के द्वारा पूछे जाने पर कि अंत:पुर में ले जाकर देवी ने कर्पूरमञ्जरी का क्या किया, जब विचक्षणा कहती है देव । मंडिता टिक्किदा भूसिदा तोसिदा अ क०मं० १०३ अर्थात् देवी ने कर्पूरमञ्जरी को स्नानविलेपनादि से मण्डित किया, टीका लगाया, वस्त्र एवं अलंकारों से विभूषित किया तथा भोजन आदि के द्वारा संतुष्ट किया। षाण्णमासिक मोती के श्रेष्ठहार से कर्पूरमञ्जरी का मुख रूपी चन्द्रमा वैसा सुशोभित हो रहा है मानो तारागण पंक्तिबद्ध होकर उसकी सेवा कर रहे हैं - कंठम्म तीअ ठविदो छम्मासिअमोत्तिआणवरहारो । सेवइता पंतीहिं मुहचंदं तरिआणिअरो ॥ विलेपन: सौन्दर्य प्रसाधनों में विलेपनादि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। तत्कालीन समाज चंदनरस, कर्पूररस, उवटन आदि अनेक प्रकार के विलेपन द्रव्यों से परिचित था। विभिन्न ऋतुओं में अनेक प्रकार के विलेपन द्रव्यों का प्रयोग किया जाता था। शिशिर में लगाये जाने वाले विलेपन द्रव्यों से युवतियां अब बसंतारंभ में विमुख हो रही हैं - बिंबोट्ठे बहलं ण देंति मअणं णो गंधतेल्लाविला, वेणीओ विरअंति लेति ण तहा अंगम्मि कुप्पासअं । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy