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कर्पूरमञ्जरी में भारतीय समाज : १३
ऐसे ही अन्य पात्र हैं। देवी गम्भीरा है। विदूषक भी विद्वान् है।
परिवारः कर्पूरमञ्जरी के समाज में परिवार की दशा सुदृढ़ थी। पति-पत्नी, पुत्रादि के अतिरिक्त दास-दासी भी परिवार के अन्तर्गत ही माने जाते थे। पूरे परिवार में प्रेम का वातावरण विद्यमान था। हास्य, प्रसन्नता, सरलता तथा सहजता पारिवारिक जीवन में रोम-रोम में भरा था। माता-पिता के अतिरिक्त मौसी, भगिनी आदि पारिवारिक सम्बन्धों के द्योतक पदों का प्रयोग मिलता है। कर्पूरमञ्जरी देवी की मौसी की बेटी अर्थात् उसकी बहन है। कर्पूरमञ्जरी के द्वारा अपनी माता के नाम शशिप्रभा बताये जाने पर वह देवी मन ही मन कहती है
सा वि में माउच्छिआ। कर्पूरमञ्जरी को बहन जानकर दोनों परस्पर आलिंगन करती हैरानी कहती है- एहि बहिणिए आलिंगसु मं११। अपनी बड़ी बहन को बड़े प्रेम से कर्पूरमञ्जरी प्रथम प्रणाम करती है - अम्महे। कप्पूरमंजरीए एसो पढमो पणामो१२।
खानपानः उस समय की भोजन व्यवस्था बहुत समृद्ध थी। प्राय: लोग शाकाहार का प्रयोग करते थे। चावल, दाल, गाय-भैंस के दूध, दही आदि का प्रयोग होता था। श्रेष्ठ कलमी चावल का भात दही के साथ अत्यधिक प्रिय भोज्य पदार्थों में से एक था। ब्राह्मण कपिंजल (विदूषक) का यह प्रिय खाद्य पदार्थ था। विदूषक को सिंदुवार के वृक्ष इसलिए प्रिय हैं कि वे कलमी चावल के समान गुच्छों को धारण करते हैं। उसी तरह वेली के पुष्प भी इसीलिए प्रिय लगते हैं क्योंकि वे भैंस के मथे हुए दही के समान दिखते हैं -
फुलुकरं कलमकूरसमं वहति जे सिदुंवारविडवा महवल्लहा ते। जे गालियस्स महिसीदहिणो सरिच्छा। ते किं च मुद्धविअइल्लपसूणपुंजा।।१३
मदिरापान का भी उल्लेख मिलता है। वारुणीमदिरा उस समय के समाज में प्रिय थी। कौल मतानुयायी मांस खाते थे - मज्जं मंसं पिज्जए खज्जए॥१४ ।।
वेषभूषाः तत्कालीन समाज में लोग सुन्दर परिधानों को धारण करते थे। उत्तरीय वस्त्र, पगड़ी, स्नानवस्त्र, कटिवस्त्र, चोली के अतिरिक्त अनेक प्रकार के रेशमी वस्त्रों का उल्लेख मिलता है। भैरवानन्द के ध्यान विमान के द्वारा लायी गई
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