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________________ १२ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६ हेमचन्द्र ने स्पष्टता के साथ 'समाज' शब्द को परिभाषित किया है - समजस्तु पशूनां स्यात् समाजस्त्वन्यदेहिनाम् । उन्होंने सभा के १२ नामों में से एक समाज को माना है - सभा संसत्समाज: परिषत्सदः। पर्षत्समज्या गोष्ठयास्था आस्थानां समितिघंटा ।। समाज के अन्तर्गत व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह, परिवार, संस्कार, जीवन पद्धति, आमोद-प्रमोद, धार्मिक परिदृश्य का अध्ययन वांक्ष्य है। व्यक्तिः व्यक्तिगत विकास एवं सुन्दरता कर्पूरमञ्जरी के समाज का प्रथम . आदर्श है। वहां का हर पात्र आभ्यंतरिक कोमलता के साथ ब्राह्य रूप सौन्दर्य से परिपूर्ण है। कला और कविता का प्रेमी नायक 'चण्डपाल' गुणी तो है ही गुणज्ञ भी है। भीतरी रमणीयता के साथ बाह्य आकर्षण भी उसके व्यक्तित्व में सहजतया विद्यमान है। तभी तो रूप की रानी कर्पूरमञ्जरी उसके प्रथम दर्शन में ही अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है, संसार के सम्पूर्ण जीवित-युवकों को विह्वल बना देने वाले कटाक्ष-पात से ही अपने हृदय की सम्पूर्ण सभगता को समर्पित कर उसी की हो जाती है। राजा की गम्भीरता एवं मधुरता रूप अलभ्य गुणों पर वह दिल दे बैठती है एसा महराओ को वि इमिणा गंभीरमहुरेण। सोहासमुदाएण जाणीअदि। ता किं ति एदस्स महिलासहिदस्स वि दिट्ठी मे बहुमण्णेति। तृतीया जवनिका में राजा को देखकर विरहव्यथिता कर्पूरमञ्जरी के आश्चर्यरस से परिपूरित स्वर राजा के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हैं नायिका कहती हैअम्मो किं एसो सहसा गअणंगणादो। अवइण्णो पुण्णिमाहरिणको ? रूपवती कुमारी कर्पूरमञ्जरी तो सौन्दर्य की गुड़िया है। कालिदास की यक्षिणी विधाता की आद्या सृष्टि है, पार्वती विधाता के सम्पूर्ण श्रम का फल है, तो कुमारी कर्पूरमञ्जरी के निर्माण में दो विधाताओं का श्रम लगा है। कवि कहता है गूंण दुवे इह पआवइणो जअम्मि, जे देहणिम्मवणजोव्वण दाणदक्खा। एक्को घडेइ पढमं कुमरीणमंगं कंडारिऊण पुणो दुईओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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