SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२ / अक्टूबर-दिसम्बर २००३ मन वैसा बनता है जैसा अन्न मनुज खाता है त्याज्य वस्तुओं को खाने से रक्त बिगड़ जाता है || मांसाहार सशक्त हृदय को असंतुलित करता है क्रूर भावनाएँ कठोरता, निष्ठुरता भरता है। जो भक्षण के लिये प्राण निर्दयता से हरते हैं खून खराबे हिंसा हत्या, वही अधिक करते हैं || आओ हिंसा के विरोध में एक साथ जुट जायें श्रद्धा से इसके विरुद्ध ऊंची आवाज उठायें सब जीने के अधिकारी हैं, जीओ और जीने दो निर्मल गंगाजल सबका है, प्रेम सहित पीने दो || ममता, समता, दया, अहिंसा धार्मिक पहरेदार यह सारे हिन्दू समाज की, संस्कृतियां सुखकारी घृणा वृष्टि को घृणा दृष्टि को देखे सब संसार अतः देश से दूर कीजिये बढ़ता मांसाहार || आत्मबोध उज्जवल चरित्र का नायक शाकाहार विश्व शान्ति उज्जवल चरित्र का उपवन शाकाहार आत्मोन्नति उज्जवल चरित्र का दायक शाकाहार जिओ और जीने देने का पोषक शाकाहार।।११ अन्त में गाँधी के शब्दों में कह सकते हैं " जैसा आहार वैसा ही आकार । जो मनुष्य अत्याहारी है, जो आहार में विवेक या मर्यादा ही नहीं रखता, वह अपने विकारों का गुलाम है। जो स्वाद को नहीं जीत सकता, वह कभी जितेन्द्रिय नहीं हो सकता । इसलिए मनुष्य को युक्ताहारी और अल्पाहारी बनाना चाहिए। शरीर आहार के लिये नहीं, आहार शरीर के लिये है। शरीर अपने आप को पहचानने के लिये मिला है। अपने आप को पहचानना, अर्थात् ईश्वर को पहचानना । इस पहचान को जिसने अपना परम विषय बनाया है वह विकारवश नहीं होगा । " १२ उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गाँधीजी ने न केवल शाकाहार पर अपने मत प्रकट किये हैं अपितु इस बात पर भी लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है कि मनुष्य को कितना भोजन लेना चाहिए जो उसकी जीवन रक्षा एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिये आवश्यक हो। इसी संदर्भ में उन्होंने कहा है “सब खुराक औषधि के रूप में लेनी चाहिए स्वाद के खातिर हरगिज नहीं। स्वाद मात्र रस में होता है और रस भूख में है। ''१३ इसके लिये इन्होंने आत्मसंयम के कुछ नियम बताये जिनका यदि मनुष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy