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________________ गाँधी एवं शाकाहार : ७५ प्रबल और विकारी भूख मिटाने के लिये मनुष्य जाति के एक समुदाय पर कसाई का पेशा लादते हैं, जबकि वे स्वयं ऐसा पेशा करने से सिहर उठेंगे.... साधारणत: मांस और मदिरा तो साथ-साथ ही चलते हैं, क्योंकि अन्नाहार, जिसमें रसीले फलों का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है, शराबखोरी का सबसे सफल इलाज है। मांसाहार से तो शराब की आदत पड़ती या बढ़ती है। मांसाहार न केवल अनावश्यक है, बल्कि शरीर के लिये हानिकारक भी है। इसलिये उसकी लत अनैतिक और पापमय भी है। उसके कारण निर्दोष पशुओं पर अनावश्यक क्रूरता बरतना और पीड़ा पहुंचाना आवश्यक होता है।......"८ उपर्युक्त विचारों को अपनी भावनाओं में एक विद्वान् ने इस प्रकार व्यक्त किया है : “मांसाहार द्वारा कोमल सद्भावनाओं का नष्ट होना व स्वार्थ, निर्दयता आदि भावनाओं का पनपना ही आज विश्व में बढ़ती हुई हिंसा, घृणा व दुष्कर्मों का मुख्य कारण है। मांसाहार वासनाओं को भड़काता है और वासनाएं जितनी पूरी की जाती हैं उतनी अधिक भड़कती हैं। इनकी कभी भी तृप्ति नहीं होती। जब इनकी तृप्ति में बाधा आती है तो क्रोध उत्पन्न होता है क्रोध से सही गलत का विवेक समाप्त हो जाता है जिससे बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने से पथ भ्रष्ट हो जाते हैं अथवा सर्वनाश हो जाता है। अर्थात मांसाहार सर्वनाश की ओर ले जाता है।" उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन से यह पूर्णत: स्पष्ट होता है कि जहाँ एक ओर मांसाहार से क्रूरता, निर्दयता, हिंसक मनोवृत्ति, उत्तेजना, अपराधिक मनोवृत्ति, दुष्कर्म एवं असाध्य रोगों में वृद्धि होती है वहीं दूसरी ओर शाकाहार हमारे अन्दर लोकहित, मैत्री और आत्मीयता की भावना का संचार करता है। यही वह तत्व है जो हमें संवेदनशील बनाता है और विश्व बन्धुत्व की भावना जागृत करता है। अपने को पहचानने एवं ईश्वर से साक्षात्कार करने का शाकाहार सबसे अच्छा माध्यम है। आज भौतिकवादी एवं आधुनिकता के युग में इसकी आवश्यकता और बढ़ गयी है। इसी संदर्भ में गांधीजी का मानना था कि : ___ "अन्नाहार सबसे सस्ता आहार है और उसे आमतौर पर अख्तियार कर लिया जाये तो आज भौतिकवाद की द्रुत प्रगति और थोड़े से लोगों के पास भारी सम्पत्ति संग्रह के साथ-साथ सामान्य लोगों में दरिद्रता की जो द्रुत गति से वृद्धि हो रही है, उसका अन्त करने में नहीं तो उसे घटा देने में निश्चय ही बहुत मदद मिलेगी।' १० प्रसिद्ध जैन कवि कल्याण कुमार 'शशि' की निम्न कविता शाकाहार एवं मांसाहार में भेद करने में सहायक सिद्ध हो सकती है : "शाकाहार उदार वृत्ति को नया जन्म देता है यही तामसिक आवेशों को बरबस हर लेता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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