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________________ खरतरगच्छ - भावहर्षीय शाखा का इतिहास : ९७ से अगरचन्दजी भंवरलाल जी नाहटार ने इस शाखा के मुनिजनों के पट्टक्रम की एक तालिका दी है। यद्यपि उन्होंने अपने विवरण में यह नहीं बताया है कि उनकी इस सूचना का आधार क्या है फिर भी इस क्षेत्र के अत्यन्त प्रामाणिक विद्वानों द्वारा दी गयी उक्त महत्त्वपूर्ण सूचना को स्वीकार करने में हमें कोई बाधा नहीं दिखाई देती है। उनके द्वारा दिया गया पट्टक्रम इस प्रकार है : भावहर्षसूरि जिनतिलकसूरि जिनोदयसूरि जिनचन्द्रसूरि 'प्रथम' जिनसमुद्रसूरि जिनरलसूरि जिनप्रमोदसूरि जिनचन्द्रसूरि 'द्वितीय जिनसुखसूरि जिनक्षमासूरि जिनपद्मसूरि जिनचन्द्रसूरि 'तृतीय जिनफतेन्द्रसूरि जिनलब्धिसूरि (२०वीं शताब्दी के अंतिम चरण में दिवंगत) उक्त तालिका में से भावहर्षसूरि, जिनतिलकसूरि और जिनोदयसूरि के नाम और उनका पट्टक्रम साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर ऊपर हम देख चुके हैं। इसी प्रकार जिनक्षमासूरि और जिनपद्मसूरि का नाम वि० सं० १९१० के प्रतिमालेखों में ऊपर आ चुका है। इस प्रकार नाहटा जी द्वारा प्रस्तुत उक्त पट्टक्रम को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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