________________
९६ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२ / अक्टूबर-दिसम्बर २००३
नाकोड़ा तीर्थ स्थित शांतिनाथ जिनालय की तीन जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं । १६ महोपाध्याय विनयसागरजी ने इनकी वाचना दी है, जो निम्नानुसार है :
१- (१) ।। सं ।। १९१० रा शाके १७७५ रा प्रवर्तमाने माशोत्तम मासे माघमाशे धवलपक्षे ५ तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महाराजाजी श्रीतखतसिंहजी
(२) कु । श्रीजसवंतसिंघजी विजयराज्ये श्रीपालिनगरे समस्त श्रीसंघ महामहोच्छवेनांजनसिलाका कृतं ॥ जोधनयरे वास्तव श्रीओसवंशे मुं । श्री अ
-
(३) खेचन्दजी तत्पुत्र मुं || श्रीलक्ष्मीचन्दजी तत्पुत्र मुं ॥ श्री ॥ मुकनचंदजी धर्मानुरागेन महोछव कारापितं श्रीमहेवापडगने श्रीवीरमपुरनगर मध्ये संखवालेचा (४) मालासा० कारापित श्रीजिनालये श्रीशान्तिनाथबिम्बं प्रतिष्ठितं जगद्गुरुविरुदधारक खरतर भावहर्षगच्छेश । भ । श्रीजिनक्षिमासूरिपट्टे भ । श्रीजि
(५) नपद्मसूरिभिः प्रतिष्ठितं सकल श्रेयोर्थम् ॥
मूलनायक शांतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
19
२- सं० १९९१० रा शाके १७७५ रा प्रवर्तमाने मासोत्तममासे माघमाशे धवलपक्षे ५ तिथौ गुरुवासरे माहाराजाधिराज माहाराजाजी श्रीतखतसिंहजी । कु । श्री जसवंतसिंघजी विजयराज्ये श्रीपालिनगरे समस्त श्रीसंघ महामहोच्छवेनांजनसिलाका कृतं मुं ॥ श्रीमुकनचंदजी धर्मानुरागेन महोच्छव कारापितं श्रीमहेवापडगने श्रीवीरमपुरनगरमध्ये संखवालेचा मालासा कारापित श्रीजिनालये श्रीसुपार्श्वनाथ बिंब प्रतिष्ठितं भ० श्रीजिनपद्मसूरिभिः|------|
सुपार्श्वनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख"
३- सं० १९१० शाके १७७५ प्र० माशोत्तममाशे शुक्लपक्षे ५ तिथौ गुरुवारे श्रीपालीनगरे अंजनशलाका कृतं । समस्तसंघ संयुतेन स्वश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्रबिम्बं कारितं । प्रतिष्ठितं । । श्रीजिनपद्मसूरिभिः खरतर श्री भावहर्षगच्छे। श्रीमद्वीरमपुरनगरे जिनालय स्थापितं ॥
चन्द्रप्रभ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १
जिनोदयसूरि के पश्चात् और अंतिम पट्टधर जिनलब्धिसूरि के पूर्व इस शाखा में कौन-कौन से पट्टधर आचार्य हुए? उनका पट्टक्रम क्या था ? इस बारे में ग्रन्थ प्रशस्तियों आदि से कोई जानकारी नहीं मिलती, साथ ही इस शाखा की कोई पट्टावली भी प्रकाशित नहीं है जिससे हमें इस सम्बन्ध में कोई जानकारी प्राप्त हो सके। सद्भाग्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org