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________________ खरतरगच्छ - भावहर्षीय शाखा का इतिहास : ९५ जिनोदयसूरि द्वारा रची गयी कयवन्नाचौढालिया और हंसराजवच्छराजरास (रचनाकाल वि०सं० १६८०) ये दो अन्य कृतियां भी प्राप्त होती हैं। अगरचन्दजी नाहटा ने कयवनाचौढालिया का रचनाकाल वि०सं० १६६२ बतलाया है। भावहर्षीयशाखा के ही मुनि रत्नसुन्दर के शिष्य मेघनिधान ने भी वि०सं० १६८८ में स्वरचित क्षुल्लककुमारचौपाई१३ की प्रशस्ति में स्वयं को जिनतिलक का ही प्रशिष्य बतलाया है। वि०सं०१६७८ में रचित पवनाभ्यासचौपाई के प्रारम्भ में रचनाकार आनन्दवर्धनसूरि ने स्वयं को धनवर्धनसूरि का शिष्य बतलाया है।१४ इन्होंने अपने प्रगुरु आदि के बारे में कोई सूचना नहीं दी है, अत: इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं हो पाती। महो० विनयसागर जी ने इन्हें भावहर्षीयशाखा से सम्बद्ध बतलाया है,१५ परन्तु अपने मत के समर्थन में उन्होंने कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है, अत: इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ कह पाना कठिन है। उक्त सीमित साक्ष्यों के आधार पर भावहर्षीय शाखा के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की एक छोटी तालिका संगठित की जा सकती है, जो निम्नानुसार है : सागरचन्द्रसूरि शाखा के साधुतिलक कुलतिलक भावहर्ष (भावहर्षसूरिशाखा के प्रवर्तक : वि०सं० १६२६ में साधुवंदना के रचनाकार) भटसार रंगमार (वि०सं० १६२० में शांतिनाथरास वि०सं० १६२१ जिननिलक में जिनपालित जिनरक्षित चौढालिया आदि के रचनाकार) उदयराज आनन्दउदय जयतिलक रत्नसुन्दर (वि०सं० १६६७ में भजनसवैया, (वि० सं० १६६२ में विद्याऔर वि०सं० १६७६ में गुणबावनी विलासचौपाई के रचनाकार) के रचनाकार) जिनोदय मेघनिधान (वि०सं०१६६२ में कयवत्राचौढालिया; वि०सं० (वि०सं० १६८८ में क्षुल्लक१६६९ में चन्द्र-सेनचौपाई वि०सं० १९८० कुमारचौपाई के रचनाकार) में हंसराजवच्छराजरास आदि के रचनाकार) जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है खरतरगच्छ की इस शाखा से सम्बद्ध तीन अभिलेखीय साक्ष्य मिले हैं और वे एक ही तिथि/वार और सम्वत् के हैं। ये लेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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