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________________ ९८ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १०-१२ / अक्टूबर-दिसम्बर २००३ सागरचन्द्रसूरि शाखा के साधुतिलक कुलतिलक भावहर्षसूरि (भावहर्षीयशाखा के प्रवर्तक; वि०सं० १६२६ में साधुवंदना के रचनाकार) जिनतिलकसूरि भद्रसार ( मुनि) रंगसार (वि०सं० १६२० में शांतिनाथरास; वि०सं० १६२१ में जिनपालित जिनरक्षितरास आदि के रचनाकार) जिनतिलक उदयराज (श्रावक ) (वि० सं० १६६७ में भजनसवैया और वि०सं० १६७६ में गुणबावनी के रचनाकार) आनन्दउदय (वि०सं० १६६२ में विद्याविलासचौपाई के रचनाकार) जिनोदयसूरि मेघनिधान (वि०सं० १६६२ में कयवन्नाचौढालिया; (वि०सं० १६८८ में वि०सं० १६६९ में चन्द्रसेनचौपाई; क्षुल्लककुमारचौपाई वि०सं० १९८० में हंसराजवच्छाजरास के कर्ता) आदि के रचनाकार) नाकोड़ा तीर्थ की व्यवस्था इनके पास थी और इन्हीं ने वि० सं० १९६५ में उसे स्थानीय जैन समाज को सुपुर्द किया। (बीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में दिवंगत) Jain Education International जिनचन्द्रसूरि T जिनसमुद्रसूरि जिनरत्नसूरि I. जिनप्रमोदसूरि जिनचन्द्रसूरि जिनसुखसूरि जिनक्षमासूरि (वि०सं० १९१०) ३ प्रतिमा लेख जिनपद्मसूरि जिनचन्द्रसूरि जिनफतेन्द्रसूरि रत्नसुन्दर जिनलब्धिसूरि महो० विनयसागर जी की सूचनानुसार अब से ३५ वर्ष पूर्व तक इस शाखा के कुछ यति विद्यमान थे, २१ पर अब वे भी न रहे और श्वेताम्बर परम्परा के विभिन्न For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525051
Book TitleSramana 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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