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नहीं है। संभव है कि काव्यशास्त्र के आचार्यों ने उक्त गाथाएं किसी अन्य स्रोत से प्राप्त की हों। इस संग्रहग्रंथ में संग्रहकार ने प्राकृत के अनेक ग्रन्थों से अपने संकलन को तैयार किया है उनमें से कतिपय ग्रंथों यथा चउपन्नमहापुरिसचरिय लीलवई कुवलयमाला कोसाम्बीविप्रकथा' आदि के उदाहरण धीरवज्जा, वसंतवज्जा, रयणयरवज्जा, दिव्यवज्जा जथा दरिद्दवज्जा आदि ग्रंथों में कुछ पाठ भेद के साथ प्राप्त होती हैं।
काव्यमूल्य एवं रसभाव योजना - जब कवि अपने मन, वचन और इन्द्रियों को एक स्थान पर स्थापित कर देता है तब काव्य प्रस्फुटित होता है। हदय की अन्तर्वेदना, भावुकता, सांसारिक अनुभूति इत्यादि को कवि सहजाभिव्यंजक शब्दों द्वारा अभिव्यक्त कर देता है। शास्त्राचार्यों के द्वारा निर्धारित सभी काव्य उपादानों की प्राप्ति वज्जालग्गं में होती है। शब्दालंकार, अर्थालंकार, रस, शब्दशक्तियां, प्रतीक, बिम्ब, छन्द-योजना एवं सौन्दर्य प्रभृति समस्त काव्य तत्व इस काव्य में समाहित हैं। आचार्य भामह ने शब्द, छन्द, अभिधान अर्थ, इतिहासाश्रित कथा, लोक, युक्ति और कला इन आठ तत्वों को काव्य के लिए आवश्यक माना है। इनकी दृष्टि में जिस कवि की कृति में उपर्युक्त आठो तत्व समाहित होते हैं वही कृति काव्य की उच्च पंक्ति में रखने योग्य है। उनका कथन है कि सत्कवित्व के बिना वाणी में वैदग्ध्य नहीं आ सकता और बिना वैदग्ध के कोई भी कृति चमत्कारपूर्ण नहीं हो सकती -
रहिता सत्कवित्वेदन कीदृशी वाग्विदग्धता ।।
भरतमुनि ने श्लेष, प्रसाद, समता, समाधि, माधुर्य, ओज, पदों की सुकुमारता, अभिव्यंजकता, उदारता और कान्ति आदि दश गुणों को काव्य के लिए उपादेय माना है।१० पर भामह की तत्त्वग्राहिणी प्रतिभा ने प्रसाद माधुर्य और ओज़ इन तीन गुणों को ही अपनी स्वीकृति प्रदान की है।११ इन्होंने वक्रोक्ति को काव्य निष्पादक तत्त्व बतलाकर उसे काव्य के लिए अनिवार्य एवं व्यापक गुण बतलाया है।१२ आचार्य भामह के मत में गुण, अलंकार, अदोषता एवं वक्रोक्ति आदि काव्य के लिए आवश्यक तत्त्व हैं।१३ आचार्य दण्डी के अनुसार उत्तम काव्य में श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, ओज, कान्ति और समाधि ये दश गुण वैदर्भी मार्ग के प्राण हैं। रीति और गुण का सम्बन्ध स्थापित होने पर ही वैदर्भ काव्य को सत्काव्य कहा जाता है।१४ छन्दकोशादि विविध शास्त्रों के अध्ययन एवं मनन (अनुशीलन) से काव्य प्रणयन में गंभीरता एवं रमणीयता का आधान होता है। अतएव ये दोनों तत्त्व अध्ययन और मनन, काव्य मूल्य के निर्मापक आधारों में से हैं।१५ आचार्य कुन्तक के अनुसार किसी के लिए षड्विध वक्रता का समावेश आवश्यक है। वर्ण चमत्कार, शब्द सौन्दर्य, विषय वस्तु की रमणीयता, अप्रस्तुतविधान एवं प्रबन्ध कल्पना ये