SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८३ एकत्ये पत्थावे जत्थ पढिज्जति पउरगाहाओ। तं खलु वज्जालग्गं वज्ज त्ति य पद्धई भणिया।।४।। अर्थात् जहाँ एक प्रस्ताव (प्रसंग) में बहुत सी गाथाएं पढ़ी या कही जाती हैं, वज्जालग्ग है। पद्धति को वज्जा कहा गया है। वज्जा शब्द संस्कृत व्रज्या का प्राकृत रूप है। प्राचीन संस्कृत में उसका अर्थ भले ही गमन या मार्ग रहा हो, कालान्तर में वह वर्ग (समूह) के अर्थ में प्रचलित हो गया था। वज्जा क्रम से रचित कोष काव्य अति मनोरम होता है। सजातीय पद्यों के एकत्र सनिवेश (संग्रह) का नाम व्रज्या है। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में कोष - रचना की दो प्रमुख परिपाटियाँ थीं। एक में अपने अन्य के सुन्दर पद्य इतस्तत: संगृहीत कर दिये जाते थे, उन्हें विषयों के अनुसार एक स्थान पर नहीं रखा जाता था। दूसरे वे जिनमें पद्यों का विषयानुसार वर्गीकरण किया जाता था। एक वर्ग के पद्य एक ही विषय का वर्णन करते थे अतएव वे सभी सजातीय कहलाते थे। प्रथम परिपाटी प्राचीन है और द्वितीय अर्वाचीन। प्राकृत में प्रथम का प्रतिनिधि ग्रन्थ गाहासत्तसई है और द्वितीय का वज्जालग्गं। सम्पूर्ण ग्रंथ ९५ वज्जाओं में (प्रकरणों में) विभक्त है, जिनमें केवल प्राकृत के प्रथित एवं लोकप्रिय छन्द गाहा' (गाथा) का प्रयोग किया गया है। इस छन्द के प्रथम चरण में बारह, द्वितीय में अठारह, तृतीय में बारह और चतुर्थ में पन्द्रह मात्रायें होती हैं। जैनमुनि जयवल्लभ ने स्वयं अपना परिचय ग्रंथ के तृतीय पद्य में दिया है “रइयं वज्जालग्गं विहिणा जयवल्लहं णाम"। वे दुराग्रहहीन एवं साम्प्रदायिक संकीर्णता से मुक्त व्यक्ति प्रतीत होते हैं। जैन होने पर भी अपने संग्रह में जैनेतर साहित्य को प्रमुख स्थान देना उनके हृदय की उदारता का प्रमाण है। अधिकतर गाथाओं में ब्राह्मणीय परम्परा के पुराणों के ही सन्दर्भ उपलब्ध होते हैं। शिव, ब्रह्मा, विष्णु, लक्ष्मी, पार्वती, गरुड़, क्षीरसागर, कृष्ण, राधा प्रभृत नाम और सागरमंथन, रासलीला, बलिबंधन, अरिष्टासुरमर्दन आदि घटनाओं की इसमें चर्चा है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि सम्पूर्ण रंचना केवल मात्र जैनेतर साहित्य से ही लिया गया है। संग्रहकार ने सुभाषित शब्द का प्रयोग जिस व्यापक अर्थ में किया है, उसकी परिधि में रसपेशल काव्य आ जाते हैं। मेरी समझ से सच्चे अर्थों में जिन्हें सुभाषित कहा जाता है वे उपदेश और नीति से सम्बन्धित पद्य तो अधिकतर जैन साहित्य के विभिन्न ग्रंथों से लिए गये होंगे और रस, अलंकार एवं मनोरम गाथाकोष का प्रणयन किया गया है, उनमें प्रबन्ध काव्य भी हो सकते हैं और मुक्तक काव्य भी। वज्जालग्गं विभिन्न कवियों की मनोरम रचनाओं का संग्रह है, जिसमें अधिकांश गाथाएं मूलत: मुक्तक हैं और कुछ प्रबन्ध, आख्यायिकाओं और चरितकाव्यों से संग्रहीत प्रतीत होती हैं। वज्जालग्गं की अनेक सरस गाथाएं ध्वन्यालोक, काव्यप्रकाश, साहित्यदर्पण, शब्दानुशासन, सरस्वती कण्ठाभरण प्रभृत ग्रंथों में उदाहृत हैं। परन्तु एक भी स्थान पर उनके नाम का उल्लेख
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy