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________________ ७५ विभिन्न जैन ग्रन्थ मृत्यु के स्वरूप की चर्चा करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों पर भी प्रकाश डालते हैं। आगमों में मरण के सत्रह प्रकार बताये गये हैं२२१. अवीचिमरण, २. तद्भवमरण, ३. अवधिमरण, ४. आद्यन्तमरण, ५. बालमरण, ६. पंडितमरण, ७. आसमरण, ८. बालपंडितमरण, ९. सशल्लमरण, १०. बलायमरण, ११. वसट्टमरण, १२. विप्पाणसमरण, १३. गिद्धपुट्ठमरण, १४. भक्तप्रत्याख्यानमरण, १५. इंगिनीमरण, १६. प्रायोपगमनमरण और १७. केवलीमरण। किन्तु भगवतीआराधना के रचनाकार ने संक्षेप में पांच प्रकार के मरणों का उल्लेख किया है - पण्डित-पण्डितमरण, पण्डितमरण, बालपण्डितमरण, बालमरण और बाल-बालमरण।२३ क्षीणकषाय और केवली का मरण पण्डित-पण्डितमरण है जबकि विरत मुनि का मरण पण्डितमरण है एवं विरताविरत श्रावक का मरण बालपण्डितमरण है। अविरत समयग्दृष्टि का मरण बालमरण है और मिथ्यादृष्टि का मरण बाल-बालमरण है। पण्डित-पण्डितमरण के तीन भेद हैं - भक्तप्रतिज्ञा, प्रायोपगमन और इंगिनी। यह मरण शास्त्रानुसार आचरण करने वाले साधु को होता है। ___ उत्तराध्ययन२४ में मरण के दो प्रकारों का विवरण मिलता है - १. अकाममरण और २. सकाममरण। अज्ञानतावश विषय-वासनाओं व भोगों में रत रहना, धर्म का उल्लंघन कर अधर्म को स्वीकार करना तथा मिथ्या जगत को सत्य समझकर हमेशा मृत्यु के भय से भयभीत रहना आदि गुण बाल जीव के हैं। इन जीवों के मरण को ही अकाममरण या बालमरण कहा जाता है। सकाममरण का सामान्य अर्थ होता है कामनासहित मरण। किन्तु यहाँ सकाम शब्द का यह अर्थ अभीष्ट नहीं है। यहाँ सकाम शब्द का अर्थ है - उद्देश्यपूर्वक या साधनापूर्वक मृत्यु का वरण। इसमें मृत्यु का वरण समभावपूर्वक किया जाता है। स्थानांग२५ में भी मरण के दो प्रकार बताये गये हैं - अप्रशस्तमरण एवं प्रशस्तमरण। अप्रशस्तमरण को अधम कोटि का माना गया है जो बारह प्रकार के हैं - १. बलन्मरण - परीषहों से पीड़ित होने पर संयम त्याग करके मरना, २. वशार्त्तमरण - इन्द्रिय-विषयों के वशीभूत होकर मरना, ३. निदानमरण - भावी जीवन में धन, वैभव, भोग आदि की प्राप्ति की इच्छा रखते हुए मरना, ४. तद्भवमरण - मरकर उसी भव में पुनः उत्पन्न होना और मरना, ५. गिरिपतनमरणपर्वतसे गिरकर मरना, ६. तरुपतनमरण - वृक्ष से गिरकर मरना, ७. जलप्रवेशमरणनदी में बहकर या जल में डूबकर मरना, ८. अग्निप्रवेशमरण - आग में झुलसकर मरना, ९. विषभक्षणमरण - विषपान करके मरना, १०. शस्यावपाटनमरण - शस्त्र की सहायता से मरना, ११. बैहायसमरण - फांसी की रस्सी से झूलकर मरना और
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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