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________________ ७६ १२. गिद्धपट्ठ या गृद्धस्पृष्टमरण - विशालकाय मृत पशु के शरीर में प्रवेश करके मरना। तीव्र कषाय के आदेश से रहित होकर तथा समभावपूर्वक मरण प्राप्त करना प्रशस्तमरण कहलाता है। इस प्रकार के मरण को ही उत्तम माना गया है। इसके दो भेद हैं - १. भक्तप्रत्याख्यानमरण - आहार-जल का क्रम से त्याग करते हुए समाधिपूर्वक प्राणत्याग करने को भक्तप्रत्याख्यानमरण कहते हैं एवं २. प्रायोपगमनमरण - कटे हुए वृक्ष के समान निश्चेष्ट पड़े रहकर प्राण त्यागने को प्रायोपगमनमरण कहते हैं। भगवतीआराधना में भक्तप्रत्याख्यान के दो भेद किये गये हैं२६- सविचार एवं अविचार। यदि मरण सहसा उपस्थित हो तो अविचारभक्तप्रत्याख्यान होता है अन्यथा सविचारभक्तप्रत्याख्यान होता है। भक्तप्रत्याख्यान का काल कम से कम अन्तर्मुहूर्त है, ज्यादा से ज्यादा बारह वर्ष और मध्यम अन्तर्मुहूर्त से ऊपर तथा बारह वर्ष से कम का है।२७ फिर भी इसका उत्कृष्ट काल बारह वर्ष कहा गया है। साधक चार वर्ष तक अनेक प्रकार के कायक्लेश एवं तप करता है। दूध आदि रसों को त्याग कर चार वर्ष तक शरीर को सुखाता है। फिर आचाम्ल और निर्विकृति द्वारा दो वर्ष बिताता है। आचाम्ल द्वारा एक वर्ष बिताता है। मध्यम तप के द्वारा शेष वर्ष के छह माह और उत्कृष्ट तप के द्वारा शेष छ: मास बिताता है।२८ इस प्रकार शरीर की सल्लेखना करते हुए वह परिणामों की विशुद्धि की ओर सावधान रहता है। एक क्षण के लिये भी उस ओर से उदासीन नहीं होता। सल्लेखना के दो भेद हैं२९- बाह्य और आभ्यन्तर। शरीर को कृश करना बाह्य सल्लेखना है और कषायों अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ को कृश करना आभ्यान्तर सल्लेखना है। बाह्य सल्लेखना के लिये छ: प्रकार के तप का विधान है - अनशन, अवमौदर्य, रसों का त्याग, वृत्तिपरिसंख्यान, कायक्लेश और विविक्त शय्या।' सल्लेखना के समय निम्न वस्तुओं के त्यागने की बात ग्रन्थकार ने कही है। दूध, दही, घी, तेल, गुड़ और घृत का पूर, पत्राशक, सूप और लवण आदि सबका अथवा एकएक का त्याग रस परित्याग है अर्थात् सल्लेखना काल में दूध आदि का या उनमें से यथायोग्य दो-तीन-चार त्याग रस परित्याग है।३१ सल्लेखना करने वाले को यह 'रस परित्याग' नामक तप का विशेष रूप से पालन करना चाहिये। क्षपक सल्लेखना के लिये मुनि क्रम से आहार को कम करते हुए शरीर को कृश करता है और एक-एक दिन ग्रहण किये तप से, एक दिन अनशन, एक दिन वृत्तिपरिसंख्यान इस प्रकार से वह सल्लेखना को अंगीकार करता है।३२ विविध प्रकार के रसरहित भोजन, अल्प भोजन, सूखा भोजन, आचाम्ल भोजन आदि से और नाना
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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