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संयम की आराधना करने पर तप की आराधना नियम से होती है किन्तु तप की आराधना में चारित्र की आराधना भजनीय है; क्योंकि सम्यग्दृष्टि भी यदि अविरत है तो उसका तप हाथी के स्नान की तरह व्यर्थ है। अतः सम्यक्त्व के साथ संयमपूर्वक ही तपश्चरण करना कार्यकारी होता है, इसलिये सम्यक् चारित्र की आराधना होती है अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान पूर्वक ही सम्यक् चारित्र होता है इसलिये सम्यक् चारित्र की आराधना में सबकी आराधना गर्भित है। इसी से आगम में आराधना को चारित्र का फल कहा गया है और आराधना परमागम का सार है। बहुत समय तक भी ज्ञान दर्शन और चारित्र का निरतिचार पालन करके भी यदि मरते समय उनकी विराधना कर दी जाये तो उसका फल अनन्त संसार है। इसके विपरीत सम्यक् चारित्र की आराधना करके आराधक क्षणमात्र में मुक्त हो जाता है। अतः आराधना ही सारभूत है।०
ध्यातव्य है कि दर्शन, ज्ञान, चारित्र एवं तप का उल्लेख अन्य आगमों में भी है, किन्तु वहाँ उनके लिये “आराधना" शब्द का प्रयोग नहीं किया गया। भगवतीआराधना में सर्वप्रथम इस प्रसंग में आराधना का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से समाधिमरण का कथन है। मृत्यु के समय की आराधना ही यथार्थ आराधना है, उसी के लिए जीवनभर आराधना की जाती है। उस समय विराधना करने पर जीवन भर की आराधना निष्फल हो जाती है और उस समय की आराधना से जीवनभर की आराधना सफल हो जाती है। अत: जो मरते समय आराधक होता है यथार्थ में उसी के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तप की साधना को "आराधना' कहा जाता है। इस प्रकार आराधना करते हुए मनुष्य को समाधिमरण अंगीकार करना चाहिये।
___ 'समाधिमरण' सामान्य बोलचाल की भाषा में समाधिपूर्वक मरण करने का नाम है। यह समाधिमरण का एक अर्थ अवश्य है, परन्तु जैन परम्परा में समाधिमरण का अर्थ भिन्न है। समाधिमरण में देहत्याग अवश्य किया जाता है, लेकिन नितांत विलक्षण ढंग से। इस अवस्था में साधक दृढ़तापूर्वक शरीर के संरक्षण का भाव छोड़ देता है। आहारादि का त्याग कर निर्विकल्प भाव से एकान्त, पवित्र और शान्त स्थान में आत्मचिन्तन करते हुए आने वाली मृत्यु की प्रतीक्षा की जाती है।११ प्रतीक्षा के इस अनुक्रम में किसी प्रकार की शीघ्रता अथवा विलम्ब की कामना नहीं रहती है, रहती है तो बस एक मात्र भावना आनेवाली मृत्यु के स्वागत की। यही समाधिमरण है जिसे जैन परम्परा में कई नाम दिये गये हैं - सल्लेखना, १२ संथारा, १३ समाधिमरण,१४ पंडितमरण,५ ज्ञानीमरण,१६ सकाममरण,७ उद्युक्तमरण,१८ संन्यासमरण,१९ अंत:क्रिया,२० मृत्युमहोत्सव' आदि।