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________________ भगवती आराधना में समाधिमरण के तत्त्व डा० सुधीर कुमार राय* - शिवार्य रचित भगवतीआराधना जैन साहित्य का एक विशिष्ट ग्रन्थ है उसी को केन्द्र बनाकर यह आलेख प्रस्तुत है। इस ग्रन्थ के रचनाकाल के सम्बन्ध में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि आचार्य जिनसेन के महापुराण (लगभग ९वीं शती ई०) से पूर्व ही इसकी रचना हुई, किन्तु कितना पूर्व यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता। विद्वानों का अनुमान है कि आचार्य कुन्दकुन्द तथा मूलाचार के रचयिता वट्टकेर के समकालीन ही शिवार्य होने चाहिये। ध्यातव्य है कि भगवतीआराधना की अन्तिम उपलब्ध टीका आशाधर की है जो विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रची गयी है और विक्रम की नवम् शताब्दी में रचित महापुराण में भगवतीआराधना तथा उसके रचयिता शिवार्य का स्मरण किया गया है। इसकी विजयोदयाटीका भी इसी काल अर्थात् नवीं शती ई० की रचना होनी चाहिये और विजयोदयाटीका की रचना के समय उसके रचयिता के सामने एक नहीं, अनेक व्याख्यायें थीं। कुन्दकुन्द एवं शिवार्य की रचनाओं में कुछ गाथागत समानता के आधार पर हम भगवतीआराधना को समकालीन मान सकते हैं। भगवतीआराधना का रचना काल विद्वानों ने विक्रम की तीसरी से पाँचवी शती ई० के मध्य माना है। भगवतीआराधना और अपराजितसूरि द्वारा रचित इसकी टीका विजयोदया एक ऐसी परम्परा का ग्रन्थ है जिनमें श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों के लक्षण विद्यमान हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदाय साधुओं के वस्त्र आदि का समर्थक ही नहीं, अपितु पोषक भी है, किन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय में यह स्वीकृत नहीं है। दूसरी ओर आचारांग आदि आगम ग्रन्थ श्वेताम्बर सम्प्रदाय में ही मान्य हैं, किन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय में नहीं। भगवतीआराधना और इसकी टीका से प्रकट होता है कि एक ओर इसके रचयिता अपरिग्रह सिद्धान्त के कारण वस्त्र आदि के विरोधी प्रतीत होते हैं और दूसरी ओर आगम ग्रन्थों को मान्य करते हैं। निश्चित ही इनका सम्बन्ध उस परम्परा से है जो श्वेताम्बर-दिगम्बर सम्प्रदाय से भिन्न है और जिसे यापनीय सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है। इसी यापनीय परम्परा के अन्तर्गत मूलाचार तथा भगवतीआराधना एवं इसकी विजयोदयाटीका की रचना हुई। किन्तु जहाँ तक समाधिमरण का प्रश्न है यह अवधारणा तो आचारांग जैसे प्राचीनतम अंग आगम में भी उपलब्ध है जिसका रचना काल विद्वानों ने ई०पू० पांचवीं* पोस्ट डाक्टोरल फेलो (आइ०सी० एच०आर०), पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी
SR No.525050
Book TitleSramana 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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